जैन धर्म का महापर्व पर्युषण दिलाता है पापों से मुक्ति

Edited By Jyoti,Updated: 28 Aug, 2019 12:55 PM

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लुधियाना: भारतीय संस्कृति में पर्वों एवं त्यौहारों की एक समृद्ध परंपरा है। पर्युषण इसी परंपरा में जैन धर्म का एक महान पर्व है। पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है चारों ओर से सिमट कर एक स्थान पर निवास करना या स्वयं में वास करना। इस अवधि में व्यक्ति...

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लुधियाना:
भारतीय संस्कृति में पर्वों एवं त्यौहारों की एक समृद्ध परंपरा है। पर्युषण इसी परंपरा में जैन धर्म का एक महान पर्व है। पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है चारों ओर से सिमट कर एक स्थान पर निवास करना या स्वयं में वास करना। इस अवधि में व्यक्ति आधि-व्याधि और उपाधि की चिकित्सा कर समाधि तक पहुंच सकता है।

पर्युषण पर्व परमात्मा के निकट जाने व आत्मा की शुद्धि के लिए मनाया जाता है। अगर हमारे व्यवहार और स्वभाव से यदि किसी को किसी भी प्रकार से पीड़ा पहुंची है तो उनका चिंतन करने हेतु क्षमा याचना का पर्व है। यह पर्व समता, सरलता व सहिष्णुता के साथ समन्वय व प्रेम को जीवन में आत्मसात करता है। हर दूसरे के अस्तित्व के स्वीकारने व दूसरे की आत्मा को अपनी आत्मा के समान समझने का पर्व है।
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पर्युषण पर्व भाद माह में 8 दिनों तक मनाया जाता है। यह माह प्राकृतिक सौंदर्य से भरा होता है, जिसमें न केवल जैन बल्कि जैनेतर लोग भी अतिरिक्त पूजा-पाठ पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं। पर्युषण पर्व के दौरान जैन साधना पद्धति को अधिकाधिक जीने का प्रयत्न किया जाता है। क्रोध, अहंकार, नफरत, घृणा आदि को शांत करके चित्त को निर्मल बनाकर शुभ संकल्पों को जागृत करने का प्रयत्न किया जाता है।

हमारे धर्म शास्त्रों में लिखा है कि प्रेम अखंड है। वह कभी नहीं मरता बल्कि क्षमाभाव से वह और अधिक जागृत होता है। प्रेम देंगे तो प्रेम मिलेगा। लेकिन किसी को क्षमा करेंगे तो वही प्रेम दोगुनी मात्रा में मिलता है। भगवान महावीर के जीवन में इसे साक्षात देखा जा सकता है। उनके सिद्धांत को जीवन में उतारना वर्तमान हालातों में अत्यंत आवश्यक है। भगवान महावीर से आज समस्त विश्व इतना स्नेह करता है, उनके धर्म मार्ग को स्वीकारता है एवं उनके प्रति अत्यंत आस्था जताता है तो इसका एकमात्र कारण यही है कि उनमें क्षमाभाव कूट-कूट कर भरा था। उसी क्षमाभाव को अपने भीतर जागृत करने का पर्व है पर्युषण। जैन धर्म में पर्युषण पर्व का विशेष महत्व इस कारण भी है कि यह मनुष्य को क्षमा व मोक्ष के मार्ग पर प्रवृत्त करता है। यह ज्ञान, दर्शन और चरित्र की आराधना का पर्व है जो व्यक्ति और समाज को परस्पर जोडऩे का कार्य करता है।
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पर्युषण पर्व की साधना का अर्थ है व्यक्ति द्वारा पीछे मुड़कर स्वयं को देखने की ईमानदार कोशिश। यह प्रतिक्रमण का एक प्रयोग है। अतीत की गलतियों को देखना और भविष्य के लिए उन गलतियों को न दोहराने का संकल्प। यह टूटते जीवन मूल्यों एवं बिखरती आस्थाओं को विराम देते हुए जीवन को नए संकल्पों के साथ जीने के लिए अग्रसर करता है।

मानसिक भार और तनाव से मुक्त होने के लिए क्षमा याचना श्रेष्ठ उपक्रम है। जैसे एक कुशल शल्य चिकित्सक शरीर की गांठों को निकाल कर रोगी को स्वस्थ बना देता है वैसे ही एक कुशल धर्मगुरु समता और मैत्री की भावना का उपदेश देकर अनुयायियों को उनके विभिन्न प्रकार के मानसिक क्लेश से मुक्ति दिलाता है। क्रोध आदि कषाय की बहुलता से व्यक्ति कमजोर बनता है। क्रोध विष है जबकि इसका प्रतिपक्ष अमृत है। क्षमा की साधना अमृत के समान बनने की साधना है।

पर्युषण आत्म साक्षात्कार का एक विशिष्ट अवसर है। हम इस अवसर पर स्वयं का स्वंय से परिचय करवाते हैं। यानी स्वयं के द्वारा स्वयं को देखना। ऐसा करने का अर्थ है, हम अपनी गलतियों को ढूंढें और उनका परिष्कार करें। आत्मा दिव्य स्वरूप है उस पर पर्दा छाया हुआ है, पर्युषण इस पर्दे को हटाने का एक अवसर है।
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यह पर्व हर व्यक्ति के मन के अंदर बसी कलुषित भावना को नष्ट करके आत्मा को शुद्ध कर उसे नेकी का मार्ग दिखाता है। वर्तमान परिस्थितियों में देखें तो पर्युषण महापर्व मात्र जैनों का पर्व नहीं है। यह समस्त मानव समाज का एक सार्वभौम पर्व है। शारीरिक शुद्धि के साथ मन की सात्विकता को भी श्रेष्ठ बनाने की पद्धति निहित है। संपूर्ण संसार में पर्युषण ही एकमात्र ऐसा पर्व है जिसमें मनुष्य आत्मरत होकर आत्मार्थी बनता है। हमारे साधु-संतों के उपदेशों में स्पष्ट व्याख्या है कि पर्युषण पर्व हमें अपनी आत्मा के जागरण का संदेश देता है और हम उसी के अनुरूप जी कर अपनी सोई हुई आत्मा को जगाते हैं। यह आत्मा के भीतर प्रकाशित होने वाली आत्मीयता को उभारने की शक्ति प्रदान करता है। हम सब मिलकर भारतीय संस्कृति के मूल आधार तप, त्याग और संयम के पावन पर्व को क्षमा के साथ जीएं जिससे समस्त जगत का कल्याण हो।

कोमल कुमार जैन
चेयरमैन ड्यूक फैशन्स, इंडिया लि., लुधियाना

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