Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Oct, 2021 08:47 AM
अग्रसेन, अग्रवाल जाति के लोग जिनके वंशज हैं, एक पौराणिक कर्मयोगी लोकनायक, समाजवाद के प्रणेता, युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी माने जाते थे। आपका जन्म द्वापर युग के अंत और
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Maharaja Agrasen Jayanti 2021: अग्रसेन, अग्रवाल जाति के लोग जिनके वंशज हैं, एक पौराणिक कर्मयोगी लोकनायक, समाजवाद के प्रणेता, युग पुरुष, राम राज्य के समर्थक एवं महादानी माने जाते थे। आपका जन्म द्वापर युग के अंत और कलयुग के प्रारंभ में हुआ था। वह भगवान श्री कृष्ण के समकालीन थे। महाराजा अग्रसेन का जन्म नवरात्रि के प्रथम दिवस, आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को हुआ, जिसे अग्रसेन जयंती के रूप में मनाया जाता है।
वह प्रताप नगर के सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा वल्लभ के पुत्र, खांडवप्रस्थ के राजा ययाति के वंशज और राजा शूरसेन के बड़े भाई थे जो बलराम और भगवान श्री कृष्ण के दादा थे। बचपन से ही मेधावी एवं अपार तेजस्वी अग्रसेन जी अपने पिता की आज्ञा से नागराज कुमुट की कन्या ‘माधवी’ के स्वयंवर में गए।
राजकुमारी ने युवराज अग्रसेन के गले में वरमाला डालकर उनका वरण किया। इसे देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और वह इनसे कुपित हो गए जिससे इनके राज्य में सूखा पड़ गया और जनता में त्राहि-त्राहि मच गई। प्रजा के कष्ट निवारण के लिए अग्रसेन जी ने अपने आराध्य देव शिव की उपासना की। इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने इन्हें वरदान दिया तथा प्रतापगढ़ में सुख-समृद्धि एवं खुशहाली लौटाई।
धन-संपदा और वैभव के लिए महाराजा अग्रसेन ने महालक्ष्मी की आराधना करके उन्हें प्रसन्न किया। महालक्ष्मी जी ने उन्हें गृहस्थ जीवन का पालन करके अपने वंश को आगे बढ़ाने का आदेश देते हुए कहा कि तुम्हारा यही वंश कालांतर में तुम्हारे नाम से जाना जाएगा।
महालक्ष्मी के आशीर्वाद से भगवान अग्रसेन ने महाभारत के युद्ध से 51 साल पहले ‘अग्रोहा’ में एक बहुत समृद्ध और विकसित राज्य का निर्माण किया जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है। इन्होंने अपने राज्य को हिमालय, पंजाब, यमुना की तराई और मेवाड़ क्षेत्र तक बढ़ाया। भगवान अग्रसेन ने वानिक धर्म का पालन किया और यज्ञ में पशुओं के वध से इंकार किया। उनके ज्येष्ठ पुत्र विभु थे। उन्होंने 18 महायज्ञों का आयोजन किया। उसके बाद उन्होंने अपने 18 बच्चों के बीच अपने राज्य को विभाजित किया।
अपने प्रत्येक बच्चों के गुरु के नाम से 18 गोत्रों गर्ग, गोयल, गोयन, बंसल, कंसल, सिंघल, मंगल, जिंदल, तिंगल, ऐरण, धारण, मुधुकुल, बिंदल, मित्तल, तायल, भंदल, नागल, कुच्छल की स्थापना की। अग्रोहा राज्य की 18 राज्य इकाइयां थीं। प्रत्येक राज्य की इकाई को एक गोत्र से अंकित किया गया था। उस विशेष राज्य इकाई के सभी निवासियों की उस गोत्र द्वारा पहचान की गई। भगवान अग्रसेन ने ऐलान किया कि वैवाहिक गठबंधन एक ही गोत्र में नहीं हो सकता है।
भगवान अग्रसेन का भगवा ध्वज अहिंसा और सूर्य का प्रतीक है तथा सूर्य की 18 किरणें 18 गोत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ध्वज में चांदी के रंग की एक ईंट और एक रुपया वैभव, भाईचारे एवं परस्पर सहयोग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
‘अग्रवाल समुदाय’ पिछले 5100 वर्षों से भारत के सर्वाधिक सम्मानित उद्यमी समुदायों में से एक रहा है। देश भर में असंख्य गौशालाएं, सामुदायिक भवन, धर्मशालाएं, काफी हद तक अग्रवाल समाज के सहयोग से चल रही हैं। अग्रवाल समाज ने न केवल अपनी मेहनत से देश को आर्थिक मजबूती दी है, बल्कि देश की आजादी में भी इस समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अग्रवाल समाज से हैं।