Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Nov, 2024 09:13 AM
Sher-e-Punjab Maharaja Ranjit Singh birthday: भारत में अंग्रेजी शासन भले ही 200 वर्षों तक रहा परंतु भारत का अभिन्न अंग पंजाब सूबा सबसे बाद में ब्रिटिश शासन के अधीन आया।
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Sher-e-Punjab Maharaja Ranjit Singh birthday: भारत में अंग्रेजी शासन भले ही 200 वर्षों तक रहा परंतु भारत का अभिन्न अंग पंजाब सूबा सबसे बाद में ब्रिटिश शासन के अधीन आया जिसका प्रमुख कारण पंजाब में महाराजा रणजीत सिंह का शासन रहा जिसने प्रथम खालसा सिख राज्य की नींव रखी तथा अंग्रेजों को भी पास फटकने नहीं दिया जिससे पंजाब समृद्ध और खुशहाल होता गया।
रणजीत सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1780 को गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में माता राज कौर तथा पिता महा सिंह के यहां हुआ। महा सिंह शुकरचकिया मिसल के बहादुर जरनैल थे तथा माता धार्मिक प्रवृत्ति की स्त्री थीं। उस समय पंजाब सिख मिसलों के अधीन था जोकि परस्पर लड़ते-झगड़ते रहते थे तथा पंजाब को एक ऐसे बहादुर, दूरदर्शी तथा कुशल नेतृत्व की तलाश थी जो रणजीत सिंह के शासक बनने पर पूरी हुई।
रणजीत सिंह ने अपने पिता से बहादुरी सीखी तथा 1801 में पिता की मौत के बाद शुकरचकिया मिसल का कार्यभार संभाला तथा सभी मिसलों को एकत्र करके अपने अधीन किया तथा अपने को महाराजा घोषित किया।
रणजीत सिंह ने धीरे-धीरे शासन व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत की जिससे अंग्रेजी हुकूमत भी घबरा गई तथा पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने की सारी कोशिशों पर रणजीत सिंह ने पानी फेर दिया।
रणजीत सिंह ने अपनी बुद्धिमता से अंग्रेजों के साथ परस्पर संधियां भी कीं तथा ब्रिटिश भी उनके कायल हुए बिना नहीं रह सके।
रणजीत सिंह की फौज में घुड़सवार, पैदल सेना, तोपखाना आदि शामिल थे तथा हरी सिंह नलवा जैसे बहादुर कमांडर भी उनकी बेमिसाल फौज का अहम हिस्सा थे जिसके बल पर रणजीत सिंह ने अनेकों लड़ाइयों, जिनमें लाहौर, मुल्तान, अटक, पेशावर, सिंध, कश्मीर, काबुल, कंधार आदि शामिल थी, में लगातार विजय प्राप्त की तथा उनका साम्राज्य दूर-दूर तक फैल गया।
साम्राज्य विस्तार के साथ-साथ रणजीत सिंह ने बेहतर शासन प्रबंध भी किया। उनके मंत्रियों में फकीर अजीजुद्दीन, दीवान दीनानाथ तथा राजा ध्यान सिंह प्रधानमंत्री शामिल थे जो कई प्रमुख फैसलों में महाराजा को परामर्श देते थे। रणजीत सिंह को ‘शेरे पंजाब’ भी कहा जाता है जिन्होंने प्रजा हितैषी अनेकों कार्य किए।
सभी धर्मों, सम्प्रदायों का सम्मान तथा उनके धार्मिक स्थानों का विकास भी महाराजा की नीति का प्रमुख पहलू रहा। उन्होंने जालंधर को दोआबा, पटियाला को मालवा तथा अमृतसर को माझा की राजधानी बनाया तथा लाहौर को पंजाब की राजधानी घोषित किया। हरमंदिर साहिब को स्वर्ण मंडित किया। जालंधर, पटियाला आदि में हिन्दू धार्मिक स्थानों का विकास किया तथा सबको न्याय प्रदान किया।
रणजीत सिंह ने सर्वप्रथम महताब कौर से विवाह किया तथा रानी राज कौर, रतन कौर तथा महारानी जिंदा भी उनकी पत्नियां थीं।
उनके उत्तराधिकारी दो पुत्र खड़क सिंह तथा दलीप सिंह थे जोकि अयोग्य साबित हुए।
27 जून, 1839 को लाहौर के किले में महाराजा का निधन हुआ। रणजीत सिंह के बाद पंजाब में अराजकता फैल गई तथा सिखों और अंग्रेजों के बीच दो प्रमुख युद्ध हुए। अंग्रेजों ने सिख दरबार में फैली अराजकता का लाभ उठाया तथा इन युद्धों में सिखों को मिली करारी हार से पंजाब ब्रिटिश शासन अधीन हो गया।
हाल ही में आई बी.बी.सी. लंदन की एक प्रमुख रिपोर्ट में महाराजा रणजीत सिंह को विश्व में पिछले 500 वर्षों में सबसे कुशल शासक माना गया जोकि एक मिसाल है।