Maharana Pratap Story: अरावली की चट्टानों पर वीरता की यह कहानी आज भी है देशभक्ति का उदाहरण

Edited By Prachi Sharma,Updated: 28 Dec, 2024 11:08 AM

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संकट काल में महाराणा प्रताप जी पुंगा की पहाड़ी बस्ती में रुके हुए थे। बस्ती के वनवासी बारी-बारी से प्रतिदिन राणा प्रताप के लिए भोजन पहुंचाया करते थे।

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Maharana Pratap Story: संकट काल में महाराणा प्रताप जी पुंगा की पहाड़ी बस्ती में रुके हुए थे। बस्ती के वनवासी बारी-बारी से प्रतिदिन राणा प्रताप के लिए भोजन पहुंचाया करते थे।

इसी कड़ी में आज दुद्धा की बारी थी लेकिन उसके घर में अन्न का दाना भी नहीं था। दुद्धा की मां पड़ोस से आटा मांगकर ले आई और रोटियां बनाकर दुद्धा को देते हुए बोली, ‘‘ले ! यह पोटली महाराणा को दे आ।’’

दुद्धा ने खुशी-खुशी पोटली उठाई और पहाड़ी पर दौड़ते-भागते रास्ता नापने लगा। 

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घेराबंदी किए बैठे अकबर के सैनिकों को दुद्धा को देखकर शंका हुई। एक ने आवाज लगाकर पूछा, ‘‘क्यों रे ! इतनी जल्दी-जल्दी कहां भागा जा रहा है ?’’

दुद्धा ने बिना कोई जवाब दिए, अपनी चाल बढ़ा दी। मुगल सैनिक उसे पकडऩे के लिए उसके पीछे भागने लगा, लेकिन उस चपल-चंचल बालक का पीछा वह जिरह-बख्तर में कसा सैनिक नहीं कर पा रहा था। दौड़ते-दौड़ते वह एक चट्टान से टकराया और गिर पड़ा, इस क्रोध में उसने अपनी तलवार चला दी।

तलवार के वार से बालक की नन्हीं कलाई कटकर गिर गई। रक्त फूट कर बह निकला, किंतु उस बालक की हिम्मत देखिए, नीचे गिर पड़ी रोटी की पोटली उसने दूसरे हाथ से उठाई और फिर सरपट दौड़ने लगा। बस, उसे तो एक ही धुन थी - कैसे भी करके राणा जी तक रोटियां पहुंचानी हैं। रक्त अधिक बह चुका था, अब दुद्धा की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा।

उसने चाल और तेज कर दी, जंगल की झाड़ियों में गायब हो गया। सैनिक हक्के-बक्के रह गए कि कौन था यह बालक ? जिस गुफा में राणा परिवार समेत थे, वहां पहुंचकर दुद्धा चकराकर गिर पड़ा। उसने एक बार और शक्ति बटोरी और आवाज लगा दी, ‘‘राणा जी।’’

आवाज सुनकर महाराणा बाहर आए, एक कटी कलाई और एक हाथ में रोटी की पोटली लिए खून से लथपथ 12 साल का बालक युद्ध भूमि के किसी भैरव से कम नहीं लग रहा था। राणा जी ने उसका सिर गोद में ले लिया और पानी के छींटे मारकर होश में ले आए, टूटे शब्दों में दुद्धा ने इतना ही कहा, ‘‘राणाजी ! ये... रोटियां... मां ने... भेजी हैं।

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फौलादी प्रण और तन वाले राणा की आंखों से शोक का झरना फूट पड़ा। वह बस इतना ही कह सके, ‘‘बेटा, तुम्हें इतने बड़े संकट में पड़ने की क्या आवश्यकता थी ?’’ 

वीर दुद्धा ने कहा, ‘‘अन्नदाता! आप तो पूरे परिवार के साथ संकट में हैं। मां कहती है कि आप चाहते तो अकबर से समझौता कर आराम से रह सकते थे, पर आपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए कितना बड़ा त्याग किया। उसके आगे मेरा त्याग तो कुछ नहीं है।’’

इतना कह कर वीरगति को प्राप्त हो गए दुद्धा। राणा जी की आंखों में आंसू थे, मन में कहने लगे- ‘धन्य है तेरी देशभक्ति, तू अमर रहेगा, मेरे बालक। तू अमर रहेगा।’

अरावली की चट्टानों पर वीरता की यह कहानी आज भी देशभक्ति का उदाहरण बनकर बिखरी हुई है।
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