mahakumb

महर्षि दयानंद जी के कल्याणकारी विचार बदल देंगे परमेश्वर के प्रति आपके सभी भ्रम

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 May, 2024 07:35 AM

maharishi dayanand

जब परमेश्वर निराकार, सर्वव्यापक है तब उसकी मूर्ति ही नहीं बन सकती और जो मूर्ति के दर्शन मात्र से परमेश्वर का स्मरण होने लगे तो परमेश्वर के बनाए पृथ्वी, जल अग्नि, वायु, वनस्पति आदि अनेक पदार्थ जिनमें ईश्वर ने

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Thoughts of Maharishi Dayanand Ji: जब परमेश्वर निराकार, सर्वव्यापक है तब उसकी मूर्ति ही नहीं बन सकती और जो मूर्ति के दर्शन मात्र से परमेश्वर का स्मरण होने लगे तो परमेश्वर के बनाए पृथ्वी, जल अग्नि, वायु, वनस्पति आदि अनेक पदार्थ जिनमें ईश्वर ने अद्भुत रचना की है उनको देखकर परमेश्वर का स्मरण नहीं हो सकता? जो तुम कहते हो कि मूर्ति को देखने से परमेश्वर का स्मरण होता है, यह कथन सर्वथा मिथ्या है और जब वह मूर्ति सामने न होगी तो परमेश्वर के स्मरण न होने से मनुष्य एकांत पाकर चोरी-चकारी आदि कुकर्म करने में प्रवृत्त भी हो सकता है क्योंकि वह जानता है कि इस समय वहां मुझे कोई नहीं देखता। इसलिए वह अनर्थ करे बिना नहीं चूकता। इत्यादि अनेक दोष पाषाण आदि मूर्ति पूजा करने से सिद्ध होते हैं।

PunjabKesari Maharishi Dayanand
अब देखिए जो पाषाण आदि मूर्तियों को न मानकर सर्वदा सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी और न्यायकारी परमात्मा को सर्वत्र जानता और मानता है वह पुरुष सर्वत्र, सर्वदा परमेश्वर को सबके बुरे-भले कर्मों का द्रष्टा जान कर एक क्षणमात्र भी परमात्मा से अपने को पृथक न जानकर कुकर्म करना तो बहुत बड़ी बात है, मन में कुचेष्टा भी नहीं कर सकता, क्योंकि वह जानता है, जो मैं मन, वचन और कर्म से भी कुछ बुरा काम करूंगा तो इस अंतर्यामी के न्याय से बिना दंड पाए कदापि नहीं बचूंगा और नाम स्मरण मात्र से कुछ भी फल नहीं होता। जैसे कि मिश्री-मिश्री कहने से मुंह मीठा और नीम-नीम कहने से कड़वा नहीं होता बल्कि जीभ से चखने से ही मीठा या कड़वापन जाना जाता है।

PunjabKesari Maharishi Dayanand
नाम लेने की तुम्हारी रीति उत्तम नहीं। जिस प्रकार तुम नाम स्मरण करते हो वह रीति झूठी और वेद-विरुद्ध है। नाम स्मरण इस प्रकार करना चाहिए जैसे न्यायकारी ईश्वर का एक नाम है। इस नाम से जो इसका अर्थ है कि जैसे पक्षपातरहित होकर परमात्मा सबका यथावत न्याय करता है, वैसे उसको ग्रहण कर न्याययुक्त व्यवहार सर्वदा करना। अन्याय कभी न करना। इस प्रकार एक नाम से भी मनुष्य का कल्याण हो सकता है।

PunjabKesari Maharishi Dayanand
‘अज एकपात अकायम’ इत्यादि विशेषणों से परमेश्वर को वेदों में जन्म मरण और शरीर धारणरहित कहा गया है तथा युक्ति से भी परमेश्वर का अवतार कभी नहीं हो सकता क्योंकि जो आकाशवत सर्वत्र व्यापक, अनंत और सुख-दुख, दृश्य आदि गुणरहित है वह एक छोटे से गर्भाशय और शरीर में क्यों कर आ सकता है?

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!