Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Apr, 2024 11:43 AM
महर्षि दयानंद जी ने विद्वानों के कर्तव्यों का उल्लेख करते हुए उन पर विद्या प्रचार तथा समाज सुधार का बड़ा उतरदायित्व सौंपा है। वह लिखते हैं कि विद्वानों को चाहिए कि अविद्या की निन्दा और दोषों का निवारण करें।
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Maharishi dayanand inspirational quotes: महर्षि दयानंद जी ने विद्वानों के कर्तव्यों का उल्लेख करते हुए उन पर विद्या प्रचार तथा समाज सुधार का बड़ा उतरदायित्व सौंपा है। वह लिखते हैं कि विद्वानों को चाहिए कि अविद्या की निन्दा और दोषों का निवारण करें। जो शरीर और मन को हिंसा आदि बुरे कर्मों में लगाते हैं, उन्हें उनसे दूर करें तथा सर्वत्र सद्गुणों का प्रसार करें। मनुष्यों को सब विद्याएं पढ़ाकर विद्यावान कर दें, जिससे वे संशयरहित होकर सदा सुखी रहें। शिक्षक का कर्त्तव्य राष्ट्र के भावी कर्णधार शिष्यों को विद्या एवं चरित्र दोनों की शिक्षा देकर सुयोग्य बनाना है।
How to be a teacher ? अध्यापक कैसे हों ?
इस विषय पर महर्षि दयानंद जी लिखते हैं कि जो नवीन-नवीन विद्याओं को ग्रहण करने के इच्छुक हों और अज्ञानियों को ज्ञान देकर विद्वान बनाते हैं वे ही पूजनीय होते हैं।
जो मेधावी, परोपकारी, विद्वान, विद्या के ऐश्वर्य से युक्त, अहिंसक, ब्रह्मनिष्ठ पुरुष हो, उसी को योग्य अध्यापक जानकर शिष्यों को अपनी सभी शंकाओं का निवारण करना चाहिए किन्तु जो अविद्वान, ईर्ष्यालु, कपटी और स्वार्थी मनुष्य हो, उससे सर्वदा दूर रहना चाहिए।
महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने ग्रंथों में शिक्षा के विभिन्न बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए ऋग्वेद तथा यजुर्वेद के भाष्य में भी अनेक वेदमंत्रों का शिक्षापरक अर्थ करते हुए महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। जिसके माध्यम से वैदिक शिक्षा विज्ञान भी हमारे सम्मुख व्यक्त होता है। महर्षि दयानंद द्वारा लिखित साहित्य में जिस शिक्षा विज्ञान का वर्णन मिलता है, निश्चय ही शिक्षा की उस सारणि से छात्रों को शिक्षित करने वाले सुयोग्य शिक्षक के प्रयास से वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक व राष्ट्र संबंधी समस्त समस्याओं का समाधान संभव है।
समस्याओं का निदान हमारे मन-मस्तिष्क में है और निर्मल अंत:करण का निर्माण शिक्षक, आचार्य और गुरुजनों के अधीन है।
वर्तमान में जिस शिक्षा पद्धति की आवश्यकता है, उसे महर्षि दयानंद द्वारा स्थापित शिक्षा प्रणाली से ही पूर्ण किया जा सकता है। वर्तमान शिक्षा पद्धति के द्वारा अच्छे नागरिकों का निर्माण करना संभव नहीं है क्योंकि शिक्षकों और विद्यार्थियों में आपसी तालमेल का अभाव है। शिक्षक अपने कर्तव्यों को नहीं जानता और विद्यार्थी उचित मार्गदर्शन के अभाव में दिशाहीन है। अच्छे शिक्षक के मार्गदर्शन में व्यक्ति अपना एवं समाज का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, उत्तम शिक्षा के इस प्रमुख महत्व को हमें स्वीकार करना चाहिए।