Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Oct, 2022 12:29 PM
सामर्थ्यशाली, सर्वशक्तिमान, महान ज्ञानी, परम बुद्धिमान वाल्मीकि भगवान को सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति के नाविक, महाकाव्य रामायण के निर्माता, आदि कवि, महर्षि, दयावान व संस्कृत कविता के पितामह के रूप में जाना व माना जाता है।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
2022 Maharishi Valmiki Jayanti: सामर्थ्यशाली, सर्वशक्तिमान, महान ज्ञानी, परम बुद्धिमान वाल्मीकि भगवान को सम्पूर्ण विश्व में भारतीय संस्कृति के नाविक, महाकाव्य रामायण के निर्माता, आदि कवि, महर्षि, दयावान व संस्कृत कविता के पितामह के रूप में जाना व माना जाता है। महाकाव्य रामायण में इन्होंने 24000 श्लोक, 100 आख्यान, 500 सर्ग और उत्तरकांड सहित 7 कांडों का प्रतिपादन किया है। इसमें भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज की अमूल्य निधियों, महापराक्रम लोकाचार, क्षमा, सौम्यता तथा सत्य शीलता का वर्णन है।
1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें
दयावान वाल्मीकि भगवान जी ने सर्वप्रथम विश्व को दया और अहिंसा का पाठ पढ़ाया और शांति का संदेश दिया। वह किसी को दुखी नहीं देख सकते थे। एक दिन जब तमसा नदी के घाट पर नित्य की तरह स्नान के लिए गए तो पास ही क्रौंच पक्षियों का जोड़ा, जो कभी एक-दूसरे से अलग नहीं रहता था, विचरण कर रहा था। उसी समय एक निषाद ने उस जोड़े में से नर पक्षी को बाण से मार डाला। यह देख कर महर्षि का हृदय बहुत दुखी हुआ। उन्होंने निषाद से कहा,‘‘यह अधर्म हुआ है। निषाद, तुझे नित्य निरंतर कभी भी शांति न मिले क्योंकि तूने बिना किसी अपराध के इसकी हत्या कर डाली।’’
ऐसा कह कर जब महर्षि ने अपने कथन पर विचार किया तब उनके मन में बड़ी चिंता हुई कि पक्षी के शोक से पीड़ित होकर मैंने क्या कह डाला। अंतत: उनके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि मैं ऐसे ही श्लोकों में रामायण काव्य की रचना करूं।
सीता जी को आश्रम ले आना
कुछ मुनि कुमारों ने महर्षि के पास जाकर आश्रम के समीप किसी स्त्री का समाचार सुनाया। उनकी बात सुनकर महर्षि उस ओर चल दिए। वहां पहुंच कर उन्होंने रघुनाथ जी की पत्नी सीता जी को असहाय अवस्था में देखा। शोक से पीड़ित सीता जी से वह अपनी मधुर वाणी में बोले, ‘‘पुत्री तुम राजा दशरथ की पुत्रवधू महाराजा राम की प्यारी पटरानी और मिथिला के राजा जनक की पुत्री हो। मैं जानता हूं कि तुम निष्पाप हो। अत: विदेह नंदिनी अब निश्चित हो जाओ। इस समय तुम मेरे पास हो।’’
इतना कह कर वह सीता जी को अपने आश्रम में ले गए। भगवान वाल्मीकि जी के आश्रम में ही सीता जी को दो पुत्ररत्न कुश और लव प्राप्त हुए। महर्षि ने वेद आदि का विस्तृत ज्ञान करवाने के लिए उन्हें सीता जी के चरित्र से युक्त सम्पूर्ण महाकाव्य ‘रामायण’ का अध्ययन करवाया और श्री राम के यज्ञ में कुश और लव को वीणा की लय पर मधुर स्वर में रामायण गान आरंभ करने का आदेश दिया।
इन दोनों बालकों का मधुर गान सुन कर श्री राम को बड़ा कौतूहल हुआ। श्री राम के पूछने पर दोनों बालक बोले कि जिस काव्य के द्वारा आपको सम्पूर्ण गाथा का प्रदर्शन करवाया गया है उनके रचयिता हमारे पूज्य गुरु भगवान वाल्मीकि जी हैं। ‘रामायण’ विश्व का अकेला ऐसा ग्रंथ है जिसमें मानवीय जीवन के प्रभावशाली आदर्श हैं। भगवान वाल्मीकि जी ने रामकथा के माध्यम से मानव संस्कृति के शाश्वत और स्वर्णिम तत्वों का ऐसा चित्र प्रस्तुत किया है जो अनुपम और दिव्य है।
समाज और राष्ट्र को उन्नत तथा स्वस्थ बनाने के लिए व्यक्ति का चरित्र विशेष महत्व रखता है। चरित्र के निर्माण के लिए परिवार के महान योगदान को ‘श्रीमद् वाल्मीकि रामायण’ ने स्वीकार किया है। परिवार एक ऐसा शिक्षा केंद्र है जहां व्यक्ति स्नेह, सौंदर्य, गुरुजनों के प्रति श्रद्धा, आस्था एवं समाज के सामूहिक कल्याण के लिए व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के त्याग की शिक्षा पाता है।
महत्वपूर्ण शिक्षाएं व संदेश
भगवान वाल्मीकि जी की शिक्षाओं का महाकाव्य ‘रामायण’ में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है, जिनमें कर्तव्य परायणता, आज्ञा पालन, वचन पालन, भाई का भाई के प्रति अथाह प्रेम, दुखियों व पीड़ितों के प्रति दया और मानवता व शांति का संदेश देने के साथ-साथ अपने अंदर अहंकार, ईर्ष्या, क्रोध व लोभ रूपी राक्षस को मारकर सहनशीलता अपनाना शामिल है।
भगवान वाल्मीकि जी के अनुसार संसार का मूल आधार ज्ञान ही है अर्थात शिक्षा के बिना मानव जीवन व्यर्थ और अर्थहीन है क्योंकि जीवन की भूल-भुलैया के चक्रव्यूह से शिक्षित व्यक्ति का ही बाहर निकलना संभव तथा आसान होता है। इनकी शिक्षाओं में अस्त्र-शस्त्र, ज्ञान-विज्ञान, राजनीति तथा संगीत के अलावा आदर्श सेवक, आदर्श राजा, आदर्श प्रजा का ही नहीं, आदर्श शत्रु का भी वर्णन मिलता है। आज भी इनकी शिक्षाएं पूरी दुनिया को मानवता, प्रेम व शांति तथा सहनशीलता का संदेश देती हैं और हिंसा, शत्रुता व युद्ध के होने वाले भयंकर विनाश के दुष्परिणामों से बचने का संकेत कर रही हैं।