Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Feb, 2018 12:51 PM
महर्षि दधीचि के पुत्र पिप्लाद, जिन्हें भगवान शंकर का एक रूप माना जाता है। चूंकि वह सिर्फ पीपल का फल ही खाया करते थे, इसलिए उन्हें पिप्लाद के नाम से पुकारा जाता था। अपने पिता की तरह पिप्लाद भी बहुत तेजवान और तपस्वी थे।
महर्षि दधीचि के पुत्र पिप्लाद, जिन्हें भगवान शंकर का एक रूप माना जाता है। चूंकि वह सिर्फ पीपल का फल ही खाया करते थे, इसलिए उन्हें पिप्लाद के नाम से पुकारा जाता था। अपने पिता की तरह पिप्लाद भी बहुत तेजवान और तपस्वी थे। ये उस समय की बात है कि जब पिप्लाद को पता चला कि देवताओं को अस्थि-दान देने के कारण उनके पिता महर्षि दधिचि की मृत्यु हो गई है। यह सब जानने के बाद वह बहुत दुखी हो गए और उन्होंने देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का फैसला कर लिया। यह निश्चय करके वह भगवान शिव शंकर को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा तपस्या करने लगे और वह इसमें सफल भी हुए। भगवान शंकर उनकी तपस्या से प्रसन्न हो प्रकट हुए और उन्हें वर मांगने को कहा। तब पिप्लाद ने भगवान शंकर से कहा कि, भगवन मुझे एेसी शक्ति प्रदान करें, जिससे मैं देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का बदला लें सकूं। भोलनाथ पिप्लाद को तथास्तु कहकर अंर्तध्यान हो गए।
उनके अंर्तध्यान होने के तुरंत बाद वहां एक काली कलूटी लाल-लाल आंखों वाली राक्षसी प्रकट हुई। उसने पिप्लाद से पूछा, स्वामी आज्ञा दीजिए मुझे क्या करना है। पिप्लाद ने गुस्से में कहा, सभी देवताओं को मार डालो। आदेश मिलते ही राक्षसी पिप्लाद की तरफ झपट पड़ी। पिप्लाद अचंभित हो चीख पड़े, यह क्या कर रही हो। इस पर राक्षसी ने कहा, स्वामी अभी-अभी आपने ही तो मुझे आदेश दिया है कि सभी देवताओं को मार डालो। मुझे तो सृष्टि के हर कण में किसी-न-किसी का वास नजर आता है। सच तो यह है कि आपके शरीर के हर अंग में भी कई देवता दिख रहे हैं मुझे। इसीलिए मैंने सोचा कि क्यों न शुरुआत आपसे ही करूं।'
पिप्लाद भयभीत हो उठे। उन्होंने फिर से शंकर भगवान की तपस्या की। भगवान फिर प्रकट हुए और पिप्लाद को भयभीत देखकर समझाया। उन्होंने कहा पिप्लाद गुस्से में आकर लिया गया हर निर्णय भविष्य में गलत ही साबित होता है। पिता की मौत का बदला लेने की धुन में तुम यह भी भूल गए कि दुनिया के कण-कण में भगवान का वास है। तुम उस दानी के पुत्र हो, जिसके आगे देवता भी भीख मांगने को मजबूर हो गए थे। इतने बड़े दानी के पुत्र होकर भी तुम भिक्षुकों पर क्रोध करते हो। यह सुनते ही पिप्लाद का क्रोध शांत हो गया और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी। इस तरह एक बार फिर देवत्व की रक्षा हुई।