Edited By Sarita Thapa,Updated: 23 Jan, 2025 12:22 PM
Maharshi Dadhichi story: महर्षि दधीचि बचपन से ही परोपकारी और साहसी थे। एक बार एक पेड़ पर एक सांप चढ़ गया। उस पर तोते का एक परिवार रहता था। सांप ने तोते के एक बच्चे को पकड़ लिया।
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Maharshi Dadhichi story: महर्षि दधीचि बचपन से ही परोपकारी और साहसी थे। एक बार एक पेड़ पर एक सांप चढ़ गया। उस पर तोते का एक परिवार रहता था। सांप ने तोते के एक बच्चे को पकड़ लिया। पेड़ के नीचे तमाशबीनों की भीड़ जुट गई थी। उनमें से किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि कोई तोते के बच्चे को बचाने के लिए सामने आए।
थोड़ी ही दूरी पर दधीचि खेल रहे थे। शोरगुल सुनकर वह भी वहां आ गए। उन्होंने देखा कि सांप के मुंह में तोते का बच्चा फड़फड़ा रहा है। वह फौरन पेड़ पर चढ़ने लगे। कइयों ने एक साथ कहा, “दधीचि पेड़ पर मत चढ़ो, उतर आओ। जहरीला सांप तुम्हें डस लेगा। एक पक्षी के बच्चे के लिए तुम क्यों अपनी जान जोखिम में डाल रहे हो?”
दधीचि ने कहा, “पक्षी की भी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। वह सांप की परवाह न करते हुए पेड़ पर चढ़ गए और सांप के मुंह से तोते के बच्चे को छुड़ाकर उड़ा दिया। तोता और तोती बच्चे को जीवित पाकर चहचहा उठे। इससे पहले कि सांप दधीचि को डसता, उन्होंने पेड़ से छलांग लगा दी। उन्हें काफी चोट आई।
किसी ने उनसे पूछा, “दधीचि, क्या तुम्हें सांप से डर नहीं लगा जो तुम पेड़ पर चढ़ गए।” दधीचि ने कहा, “डरना है तो गलत काम से डरो। अच्छे काम के लिए किसका डर। अच्छा करने वालों की रक्षा तो भगवान खुद करते हैं।” दधीचि की यह भावना आगे चलकर और भी मजबूत होती गई।
जन कल्याण तथा पापियों के नाश के लिए उन्होंने अपना शरीर तक त्याग दिया था। उनकी हड्डियों से बने अस्त्र से राक्षसों का संहार हुआ।