Edited By Niyati Bhandari,Updated: 10 May, 2024 08:07 AM
भृगुकुल तिलक जमदग्नि नंदन रेणुका पुत्र भगवान श्री हरि विष्णु जी के छठे अवतार समस्त शस्त्र एवं शास्त्र के ज्ञाता भगवान परशुराम जी का वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया के दिन प्राकट्य हुआ।
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Parshuram Jayanti Story: भृगुकुल तिलक जमदग्नि नंदन रेणुका पुत्र भगवान श्री हरि विष्णु जी के छठे अवतार समस्त शस्त्र एवं शास्त्र के ज्ञाता भगवान परशुराम जी का वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की अक्षय तृतीया के दिन प्राकट्य हुआ। देवों के पूजनीय, सम्पूर्ण तेज से युक्त, योगेश्वर, सभी के पाप, ताप, सन्ताप, रोग का हरण करने वाले सुन्दर शोभनीय स्वरूप वाले शत्रुओं के संहारक परशुराम समस्त सनातन जगत के आराध्य हैं।
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भगवान श्री हरि विष्णु जी ने अहंकार और घमंड में चूर दुष्ट राजाओं के मान-मर्दन हेतु भगवान परशुराम जी के रूप में अवतार लेकर दण्डित करने के लिए भगवान शिव द्वारा प्रदान अमोघ फरसे से उनके साथ युद्ध कर उन्हें 21 बार दण्डित कर प्रजा को भय मुक्त किया। धर्म से द्वेष करने वाले अन्यायियों का दमन करने के लिए तथा जगत की रक्षा के लिए भगवान परशुराम जी ने परशु धारण किया। भगवान परशुराम जी सनातन मर्यादा के रक्षक हैं।
जब सीता जी के स्वयंवर के समय भगवान श्री राम ने शिव धनुष तोड़ा, तब भगवान परशुराम जी के राजा जनक के राज दरबार में पधारने के अवसर पर तुलसीदास जी भगवान परशुराम जी की पावन छवि का वर्णन करते हुए कहते हैं- ‘‘ऊंचे और पुष्ट कंधे हैं, छाती व भुजाएं विशाल हैं। सुंदर यज्ञोपवीत धारण किए, माला पहने और मृगचर्म लिए हैं। कमर में मुनियों का वस्त्र (वल्कल) और दो तरकश बांधे हैं। हाथ में धनुष-बाण और सुंदर कंधे पर फरसा धारण किए हैं।’’
जब क्रोधित हुए भगवान परशुराम जी सभा में पधारे तो सभी उपस्थित राजा भय से व्याकुल हो गए थे। भगवान शिव से उन्हें भगवान श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। शस्त्रविद्या के महान ज्ञाता भगवान परशुराम जी ने भीष्म, द्रोण तथा कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की।
भगवान परशुराम जी ने ब्राह्मण कुल में जन्म लेकर न केवल वेद-शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया अपितु क्षत्रिय स्वभाव को धारण करते हुए शस्त्रों को भी धारण किया। इससे वह समस्त सनातन जगत के आराध्य तथा समस्त शस्त्र एवं शास्त्रों के ज्ञाता कहलाए।
धर्म की स्थापना के लिए भगवान परशुराम जी ने हर युग के किसी न किसी कालखंड में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। मान्यता है कि आज भी वह महेन्द्र पर्वत पर समाधिस्थ हैं। कल्कि पुराण के अनुसार भगवान परशुराम, भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे। वे ही भगवान कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उनसे दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिए कहेंगे। भगवान परशुराम जी की महान पितृ तथा मातृ भक्ति वन्दनीय है। उन्होंने समस्त पृथ्वी को दान स्वरूप कश्यप ऋषि जी को प्रदान किया।