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Mahashivratri: महाशिवरात्रि पर रात को क्यों करनी चाहिए 4 पहर की पूजा, पढ़ें पूरी जानकारी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Feb, 2025 06:47 AM

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4 Prahar Puja on Maha Shivratri : महाशिवरात्रि पर 4 पहर की पूजा का महत्व शास्त्रों में विशेष रूप से वर्णित है और इसका आध्यात्मिक तथा धार्मिक दृष्टिकोण अत्यंत गहरा है। यह पूजा विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना के लिए है और महाशिवरात्रि को समर्पित...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

4 Prahar Puja on Maha Shivratri : महाशिवरात्रि पर 4 पहर की पूजा का महत्व शास्त्रों में विशेष रूप से वर्णित है और इसका आध्यात्मिक तथा धार्मिक दृष्टिकोण अत्यंत गहरा है। यह पूजा विशेष रूप से भगवान शिव की आराधना के लिए है और महाशिवरात्रि को समर्पित उपवास, साधना और विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।

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चार पहर का महत्व
महाशिवरात्रि का पर्व रात को मनाया जाता है और इसे रात्रि के 4 पहरों में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक पहर का अपना विशेष महत्व है:

प्रथम पहर (रात का पहला भाग): यह समय जागरण का है और इस समय भगवान शिव के स्वरूप का ध्यान करके मानसिक शांति और ध्यान की स्थिति में रहना चाहिए। इस पहर में शिव के पंचाक्षरी मंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जप करना लाभकारी होता है।

द्वितीय पहर (रात का दूसरा भाग): इस समय साधक को मानसिक रूप से शिव के ध्यान में पूर्ण रूप से खो जाना चाहिए। इस पहर में शिव की उपासना से साधक का मन और आत्मा शुद्ध होती है। इस समय शिव की महिमा का गान करना और उनका गुणगान करना श्रेष्ठ होता है।

तृतीय पहर (रात का तीसरा भाग): यह पहर साधना का होता है, जिसमें रात्रि में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है। इस समय की पूजा में शिवलिंग पर जल, दूध, शहद, बेलपत्र आदि अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है। साथ ही भगवान शिव की अर्चना और संकल्प से हमारी आत्मा को परम शांति की प्राप्ति होती है।

चतुर्थ पहर (रात का चौथा भाग): यह समय भगवान शिव से अपनी अंतिम प्रार्थना करने का है। इस समय साधक को आंतरिक रूप से शुद्ध होकर भगवान शिव की उपासना में पूर्ण मनोयोग से लगना चाहिए। इस समय रात्रि का जागरण और साधना का फल अत्यधिक पुण्यकारी होता है। इस समय को समाप्त करते हुए, शिव के आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति की कामना की जाती है।

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शास्त्रों के अनुसार जानें क्यों की जाती है, महाशिवरात्रि पर 4 पहर की पूजा
महाशिवरात्रि पर चार पहर की पूजा की परंपरा का संबंध धार्मिक शास्त्रों से है। विशेष रूप से शिव महापुराण और विष्णु पुराण में इस पर्व और 4 पहर की पूजा का उल्लेख मिलता है।

शिव महापुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति महाशिवरात्रि के दिन 4 पहर जागरण और पूजा करता है, उसे शिव जी के परम आशीर्वाद की प्राप्ति होती है और उसके सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।

विष्णु पुराण में उल्लेख है कि शिवरात्रि के दिन विशेष रूप से रात भर जागरण करने से व्यक्ति के जीवन में हर तरह के दुख और कष्ट समाप्त हो जाते हैं और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

गणेश उपनिषद और अन्य शास्त्रों में भी यह कहा गया है कि जो 4 पहर की पूजा करता है, उसे परमधाम की प्राप्ति होती है और वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।

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चार पहर की पूजा का आध्यात्मिक महत्व
जागरण और आत्मिक शुद्धि: शिवरात्रि पर 4 पहर की पूजा में रात भर जागरण से आत्मिक शुद्धि होती है। यह साधक को अपने अंदर की नकारात्मकताओं को दूर करने का अवसर प्रदान करता है। शिव जी की पूजा से मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है।

ध्यान और साधना: प्रत्येक पहर में ध्यान, साधना और मंत्र जप करने से साधक का मन भगवान शिव में लीन हो जाता है। यह ध्यान- साधना व्यक्ति को मानसिक शांति और आत्मिक बल प्रदान करती है।

सामूहिक धर्म सेवा और समाज का कल्याण: महाशिवरात्रि पर यह पूजा न केवल व्यक्तिगत मोक्ष के लिए होती है, बल्कि यह समाज के कल्याण के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसे पारिवारिक, सामाजिक और आध्यात्मिक समृद्धि की ओर एक कदम माना जाता है।

इस प्रकार महाशिवरात्रि पर 4 पहर की पूजा का महत्व धार्मिक, आध्यात्मिक और शास्त्रिक दृष्टिकोण से अत्यधिक है। इसका पालन करके व्यक्ति अपने जीवन में शुभता, शांति और मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है।

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