Edited By Niyati Bhandari,Updated: 17 Jul, 2023 09:11 AM
सर्वसम्पन्न श्रावस्ती नगर में भयंकर अकाल पड़ा। पशु-पक्षी, नर-नारी भोजन के अभाव में मरने लगे। सारी नगरी मरघट-सी दिखाई
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Mahatma Buddha story: सर्वसम्पन्न श्रावस्ती नगर में भयंकर अकाल पड़ा। पशु-पक्षी, नर-नारी भोजन के अभाव में मरने लगे। सारी नगरी मरघट-सी दिखाई दे रही थी। महात्मा बुद्ध ने यह देखा तो बड़े दुखी हुए। उन्होंने श्रावस्ती के धनी लोगों को बुलाया और संकट के समय में राज्य की सहायता करने के लिए कहा, परन्तु किसी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। सब उठ- उठकर चले गए।
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धनवानों को तो अपने भंडार भरे रखने थे स्वयं के लिए, मानवता के लिए खर्च करना उन्हें फिजूलखर्ची लगता था।
लोग कहीं जबरन उनसे खाद्य सामग्री न छीन लें इस भय से दरवाजे बंद करके बैठ गए। महात्मा बुद्ध काफी निराश हुए।
इतने में ही एक कुलीन घर की लड़की आई और बोली, ‘‘महात्मन ! आज से मैं श्रावस्ती नगरी के अकाल पीड़ितों की सेवा की प्रतिज्ञा करती हूं। सबके लिए भोजन जुटाने का मैं प्रयत्न करूंगी।’’
लोग एक छोटी-सी बालिका के मुंह से ऐसी बात सुनकर दंग रह गए। महात्मा बुद्ध ने पूछा, ‘‘इतने बड़े राज्य के लोगों का भरण-पोषण तुम कैसे करोगी ? तुम्हारे घर वाले तो कुछ देंगे भी नहीं।’’
बालिका बोली, ‘‘महाराज, मुझे घरवालों के देने, न देने की चिन्ता नहीं है। मैं घर-घर भिक्षा मांगूंगी। नगर-नगर जाकर पीड़ितों की सहायता के लिए प्रेरणा दूंगी। जिससे ऐसे संकट में सबका भला होगा। भगवन् आप आशीर्वाद दें।’’
महात्मा बुद्ध को एक आशा की किरण नजर आई। बालिका घर-घर घूमकर भूखों के लिए अन्न मांगने लगी। यह देखकर जिनके पास अनाज था वे मना न कर सके। देखते-देखते इतना अन्न जमा होने लगा कि भूख से प्राण त्यागने वालों की जीवन रक्षा होने लगी। कुछ ही समय बाद सबके प्रयास से विपत्ति टल गई और सभी लोग खुशी-खुशी रहने लगे।