Edited By Prachi Sharma,Updated: 09 Dec, 2023 02:27 PM
गांधी की महिला फौज नामक किताब में शामिल 74 महिलाओं के बारे में लिखने के पहले अरविंद मोहन गहरी खोजबीन करते हैं। वे कुछ और महिलाओं को लेकर भी लिखना
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Mahatma Gandhi Story: गांधी की महिला फौज नामक किताब में शामिल 74 महिलाओं के बारे में लिखने के पहले अरविंद मोहन गहरी खोजबीन करते हैं। वे कुछ और महिलाओं को लेकर भी लिखना चाहते थे लेकिन उनके विषय में प्रामाणिक जानकारी का अभाव था। आंदोलनों में जिस स्तर पर महिलाओं की भागीदारी रही, उसमें 74 की संख्या एक प्रतिनिधि आंकड़ा ही कहा जाएगा। किताब में जिन महिलाओं का जिक्र है, वह उनसे संबंधित आश्चर्यजनक जानकारियों से भरपूर है। सबसे पहले जिक्र ब्रिटिश मूल की नेल्ली सेनगुप्ता का जिनके बारे में आज शायद ही कोई जानता हो। वह अपने बंगाली मित्र से शादी कर इंगलैंड से भारत आई और जल्दी ही गांधी के प्रभाव में आकर खुद अपनी पितृभूमि के खिलाफ आंदोलन में शामिल हो गई और बार-बार जेल गई।
वर्ष 1934 के कलकत्ता कांग्रेस-अधिवेशन के नामित अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय को अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार कर लिया था। उस समय गांधी ने जो स्वयं जेल में थे, नेल्ली सेनगुप्ता को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया। इस विदेशी मूल की महिला ने सारी चुनौतियों का सामना करते हुए हजारों लोगों को जुटाकर अधिवेशन करा दिया। वह खुद अपना अध्यक्षीय भाषण नहीं कर सकीं लेकिन कांग्रेस की तीसरी महिला अध्यक्ष होने के नाते अंग्रेजों को आंदोलन की ताकत का एहसास करा दिया। आजादी के बाद उन्होंने अपना जीवन पूर्वी बंगाल (आज का बंगलादेश) में रचनात्मक सक्रियता में बिताया।
गांधी के रचनात्मक आंदोलनों से आजीवन जुड़ी रही दूसरी महिला थीं, कैथरीन मेरी हेईलमन, जिन्हें गांधी ने ही सरला बहन नाम दिया था। ब्रिटेन में पढ़ाई के दौरान गांधी के अहिंसक संघर्ष का विचार उनको आकर्षित करने लगा। बहुत मुश्किलों के बाद गांधी ने उन्हें आश्रम में रहने की अनुमति दी। वह यहां रहकर पूरी तरह भारतीय रंग में ढल गई और 1941 तक आश्रम में रहीं। बाद में गांधी ने उन्हें कुमाऊं भेजा, जहां उन्होंने श्रमशील, अशिक्षित महिलाओं के बीच लंबे समय तक काम किया। सरला बहन ने शराबबंदी, खादी, प्राकृतिक खेती और जंगल की रखवाली जैसे कामों से वहां की महिलाओं को जोड़ा। बाद में यही महिलाएं विख्यात ‘चिपकोआंदोलन’ की योद्धा बनीं। उन्होंने हिंदी में 22 किताबें भी लिखीं।
ऐसी ही एक और शख्सियत थीं, मार्गरेट कजिंस, जिन्होंने गांधी के रचनात्मक कामों और जीवन शैली को अपनाया और महिलाओं की जागृति, शिक्षा, अधिकारों और राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान दिया, जेल गई। उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति से हुआ था। उनके साथ ही सोंजा श्लेशिन, मार्जरी साइक्स, एश्थर फेयरिंग, मुरियल लिस्टर और मेडलीन स्लेड (मीरा बहन) भी हैं, जिन्होंने गांधी के साथ जुड़कर विभिन्न राजनीतिक और रचनात्मक कामों में उनका साथ दिया।
ऊंची शिक्षा और अति प्रभावशाली खानदानों से निकलीं और गांधी से चमत्कृत होकर सारी सुख-सुविधाएं छोड़कर आंदोलनों और सत्याग्रहों में गहरे तक समा गई कई महिलाएं बहुत से गांधीवादियों से आगे निकल गई। इनमें पहला नाम है डा. सुशीला नैयर का जो आज के पाकिस्तान में जन्मीं। दिल्ली के मशहूर ‘लेडी हार्डिंग कॉलेज’ से डॉक्टरी पढ़कर 1939 में जब वह ‘सेवाग्राम’ पहुंचीं, तब वहां भयंकर हैजा फैला था। वह इलाज और राहत के काम में जुट गई। गांधी जी उनकी कम उम्र और सेवा के प्रति निष्ठा से बहुत प्रभावित हुए। डा. विधान चंद्र राय की सलाह पर उन्होंने सुशीला नैयर को ही अपना निजी डॉक्टर बना लिया।
वर्ष 1942 के आंदोलन में सुशीला भी बा और बापू के साथ जेल गई। महादेव भाई और बा की मृत्यु इसी जेल प्रवास में हुई। इस दौर की डायरी उन्होंने रोज लिखी, गांधी जी ने इसे उपयुक्त माना। उनकी यह डायरी उस वक्त का सबसे भरोसेमंद इतिहास बताती है। ‘सेवाग्राम आश्रम’ में उन्होंने पहले ‘कस्तूबरा अस्पताल’ खोला, जो बाद में देश का विख्यात मैडीकल कॉलेज बना। गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग में सांझीदार होने की पहली सार्वजनिक स्वीकृति उनकी ही थी। वह बाद में भारत की स्वास्थ्य मंत्री भी रहीं। ऐसी ही एक अन्य महिला राजकुमारी अमृत कौर थीं। नाम के अनुरूप वह कपूरथला राजघराने की राजकुमारी थीं, जो परिवार के विरोध के बावजूद ‘सेवाग्राम’ आई थीं। वह गांधी की निजी सहायक भी रहीं। वह ऑक्सफोर्ड से पढ़ी-लिखी थीं। उन्होंने गांधी से प्रेरणा लेकर पर्दा प्रथा का विरोध, देवदासी समाज के कल्याण और बाल-विवाह जैसी कुरीतियों के खिलाफ व्यवस्थित काम किया।
बाद में वह ‘संविधान सभा’ की सदस्य रहीं और आजाद भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री भी। दिल्ली में ‘ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज’ (एम्स) बनाने की पहल उन्हीं की थी। उन्होंने कई और स्वास्थ्य संस्थान बनाने में भी योगदान दिया। वह ईसाई थीं, लेकिन उनका अंतिम संस्कार सिख रीति से हुआ। गांधी के यहां सभी के लिए जगह थी। आर्य समाजी स्वामी श्रद्धानंद की पोती सत्यवती, उड़ीसा के मुख्यमंत्री की पत्नी मालती चौधरी, केरल की अक्कम्मा चेरियन और अम्मू स्वामीनाथन, गांधी की गोद ली बेटी लक्ष्मी, दादा भाई नौरोजी परिवार की चार लड़कियां, गांधी से जूझने वाली बीबी अम्तुस्सलाम, जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती, रेहाना तैयबजी, दोस्तों जैसी सरोजनी नायडू, अम्मा जैसी हैसियत वाली आब्दी बानो, ‘स्वदेशी आंदोलन’ को आगे बढ़ाने वाली कम पढ़ी-लिखी गंगा बहन सभी गांधी के विशाल परिवार का अंत तक हिस्सा बनी रहीं।
महादेवी वर्मा, सुभद्राकुमारी चौहान, एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी और कमलादेवी चट्टोपाध्याय जैसी साहित्यकार और कलाकार भी गांधी की टोली में रहीं। अरुणा आसफअली, सुभद्रा जोशी, सुचेता कृपलानी जैसी महिलाएं भी गांधी की फौज में थीं, बाद में जिन्होंने देश की राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई।