Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Mar, 2018 08:51 AM
![mahavir jayanti vardhaman became lord mahavir](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2018_3image_08_37_422288610lord-mahavir-ll.jpg)
भारत में वैशाली के उपनगर कुंडलपुर के राजा सिद्धार्थ के घर तथा माता त्रिशला की कोख से ई.पूर्व. 599 में महावीर का जन्म हुआ। इनका नाम वर्धमान रखा गया क्योंकि इनके जन्म से ही राजा सिद्धार्थ के राज्य में अभिवृद्धि होने लगी थी।
भारत में वैशाली के उपनगर कुंडलपुर के राजा सिद्धार्थ के घर तथा माता त्रिशला की कोख से ई.पूर्व. 599 में महावीर का जन्म हुआ। इनका नाम वर्धमान रखा गया क्योंकि इनके जन्म से ही राजा सिद्धार्थ के राज्य में अभिवृद्धि होने लगी थी। वर्धमान जन्म से ही निर्भय थे अत: उन्हें महावीर कहा जाने लगा। महावीर 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर निग्र्रन्थ बन गए। उन्होंने ‘ज्ञातृखंड’ नामक उद्यान में जाकर ‘नमो सिद्धाणं’ (मैं सिद्धों को नमस्कार करता हूं) कहकर स्वयं ही मुनि दीक्षा ली और प्रण किया कि आज से मैं किसी भी प्राणी को मन, वचन और कर्म से कष्ट नहीं दूंगा।
महावीर निंदा और स्तुति में समभाव रखते थे। प्राय: उद्यानों, श्मशानों तथा पर्वत गुफाओं में ध्यान करते। अपने साधना काल में उन्हें बहुत कष्ट झेलने पड़े। महावीर को अज्ञानी लोग बहुत कष्ट देते थे। उन पर प्रहार करते थे।
एक ग्वाले ने उन्हें यातनाएं दीं, चंडकौशिक नामक विषधर (सर्प) ने उनके पांव पर दंशाघात किया और संगम नामक देव ने उन्हें अमानवीय कष्ट दिए। इस पर भी उन्होंने मन में किसी के प्रति प्रतिशोध की भावना नहीं आने दी। इस तरह महावीर ने तप करते हुए परम तत्व (केवल ज्ञान) की प्राप्ति की। वह महावीर से भगवान महावीर बन गए। अब उनके जानने के लिए कुछ भी बाकी नहीं रह गया था।