Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Aug, 2022 09:54 AM
एक बार महावीर समाधिस्थ थे। उसी समय एक किसान समाधिस्थ महावीर से बोला, ‘‘मेरे बैल यहां चर रहे हैं, इनका ध्यान
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Story of Lord Mahavir: एक बार महावीर समाधिस्थ थे। उसी समय एक किसान समाधिस्थ महावीर से बोला, ‘‘मेरे बैल यहां चर रहे हैं, इनका ध्यान रखना।’’
महावीर समाधिस्थ बने रहे। जब किसान लौटकर आया तो उसे बैल कहीं नहीं मिले। उसने महावीर से बैलों के संबंध में पूछा तो महावीर ने कोई उत्तर नहीं दिया। महावीर का कोई उत्तर न पाकर कोप में भर कर वह बोला, ‘‘धूर्त! तू चोर है।’’ और वह उन्हें मारने को उद्यत हुआ। इसी मध्य एक देव वहां उपस्थित हुए और उन्होंने किसान को फटकारते हुए कहा कि ये राजकुमार वर्धमान हैं और दीर्घ साधना में लीन हैं। किसान क्षमा मांगकर चला गया।
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अब देव महावीर के समक्ष पहुंचकर बोले, ‘‘श्रमण, आपकी साधना लम्बी है, साधना निर्विघ्न सम्पन्न हो सके, इस हेतु मैं आपकी सेवा में उपस्थित रहना चाहता हूं।’’
अब महावीर समाधि खोल कर बोले, ‘‘कैवल्य दूसरे के बल, सहायता या शक्ति से नहीं प्राप्त किया जाता। साधक स्वयं अपना रक्षक होता है।’’
भगवान महावीर ने उनका प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। उन्हें न तो किसान के कुकृत्य के प्रति द्वेष हुआ और न इंद्र के सेवाभाव के प्रति राग। महावीर ऐसे समत्व योगी थे।