Edited By Niyati Bhandari,Updated: 08 Jan, 2025 07:56 AM
Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में गमन का प्रतीक है। छ: मास तक सूर्य क्रांतिवृत्त से उत्तर की ओर उदय होता रहा है। छ: मास तक यह दक्षिण की ओर निकलता रहता है। प्रत्येक षण्मास की अवधि का नाम अयन है। सूर्य के...
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Makar Sankranti 2025: मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में गमन का प्रतीक है। छ: मास तक सूर्य क्रांतिवृत्त से उत्तर की ओर उदय होता रहा है। छ: मास तक यह दक्षिण की ओर निकलता रहता है। प्रत्येक षण्मास की अवधि का नाम अयन है। सूर्य के उत्तर की ओर उदय की अवधि को उत्तरायण और दक्षिण की ओर उदय की अवधि को दक्षिणायन कहा जाता है।
उत्तरायण काल में सूर्य उत्तर की ओर से उदय होता हुआ दिखाई देता है। उसमें दिन बढ़ता जाता है और रात्रि घटती जाती है। दक्षिणायन में सूर्योदय दक्षिण की ओर दृष्टिगोचर होता है। उसमें दिन घटता जाता है और रात्रि बढ़ती जाती है।
सूर्य की मकर राशि की संक्रांति से उत्तरायण और कर्क संक्रांति से दक्षिणायन प्रारंभ होता है। सूर्य के प्रकाश की अधिकता के कारण उत्तरायण विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। यही कारण है कि उत्तरायण के आरंभ दिवस मकर संक्रांति को अधिक महत्व दिया जाता है। दिन की अब तक यह अवस्था होती है कि सूर्य देव उदय होते ही अस्ताचल की ओर जाने की तैयारियां शुरू कर देते हैं। मानो दिन रात्रि में ही लीन होता जाता है। रात्रि अपनी देह बढ़ाती ही चली जाती है। अंतत: उसका भी अंत आया। मकर संक्रांति के मकर ने उसको निगलना आरंभ कर दिया। सूर्यदेव ने उत्तरायण में प्रवेश किया। अब दिन लम्बा होने लगेगा, उष्मा युक्त हो जाएगा।
यह प्राकृतिक परिवर्तन हमें जीवन में आशावाद का पाठ पढ़ाता है। हमारे सोए हुए आत्मविश्वास को बढ़ाता है और कहता है कि यदि हमारे जीवन में कुछ शिथिलिता, उत्साहहीनता आदि दोष भी आ गए हैं, हमारी दीन-हीन अवस्था है तो वह सदैव रहने वाली नहीं, उसका भी अंत सुनिश्चित है।
इस काल की महिमा संस्कृत साहित्य में वेद से लेकर आधुनिक ग्रंथपर्यंत विशेष रूप से वर्णन की गई है। उत्तरायण के काल को हमारी वैदिक संस्कृति में विशेष महत्व दिया गया है। वैदिक ग्रंथों में उसको देवयान कहा गया है और ज्ञानी लोग स्वशरीर त्याग तक की अभिलाषा इसी उत्तरायण में रखते हैं। उनके विचारानुसार इस समय देह त्यागने से उनकी आत्मा सूर्य लोक में होकर प्रकाशमार्ग से प्रयाण करेगी।
आजीवन ब्रह्मचारी भीष्म पितामह ने इसी उत्तरायण के आगमन तक शर शैया पर शयन करते हुए अपने प्राणोत्सर्ग की प्रतीक्षा की थी।
यह पर्व भारत के सभी प्रांतों में प्रचलित है। मकर संक्रांति के दिन भारतवर्ष के सभी प्रांतों में तिल और गुड़ या खांड के लड्डू बना कर, जिनको तिलवे कहते हैं, दान किए जाते हैं और इष्ट मित्रों के बीच बांटे जाते हैं।
मकर संक्रांति के पर्व पर दीनों को शीत निवारणार्थ कम्बल और घृतदान करने की प्रथा भी कहीं-कहीं दिखाई देती है। जिस प्रकार सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करके दिन-प्रतिदिन बढ़ता है, उसी प्रकार हम भी अपने गुणों में निरंतर वृद्धि को प्राप्त करते हुए निरंतर उन्नति को प्राप्त करें।