इस घाट का इतिहास कर देगा आपको हैरान

Edited By Jyoti,Updated: 25 Jun, 2022 11:21 AM

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हमारे देश में हिंदू धर्म से जुड़ी ऐसी कई जगहें जो रहस्यमयी तो हैं ही साथ ही साथ दिलचस्प व हैरान जनक भी हैं। इन्ही में से एक है काशी के 84 घाटों में सबसे चर्चित मणिकर्णिका घाट। बताया जाता है ये वही घाट है जहां 365 दिनों तक आग जलती रहती है। कहते हैं...

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हमारे देश में हिंदू धर्म से जुड़ी ऐसी कई जगहें जो रहस्यमयी तो हैं ही साथ ही साथ दिलचस्प व हैरान जनक भी हैं। इन्ही में से एक है काशी के 84 घाटों में सबसे चर्चित मणिकर्णिका घाट। बताया जाता है ये वही घाट है जहां 365 दिनों तक आग जलती रहती है। कहते हैं यहां पर दाह संस्कार करवाने से व्यक्ति की आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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यही वजह है कि यहां पर रोजाना 200 से 300 शवों का अंतिम संस्कार होता है।आपको बता दें कि यहां पर शिवजी और मां दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर भी है, जिसका निर्माण मगध के राजा ने करवाया था। तो चलिए अब आपको बता दें कि इस घाट में ऐसा क्या है कि यहां दाह संस्कार करने से मोक्ष मिलता है।

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हिंदुओं के लिए इस घाट को अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। बताया जाता है कि मणिकर्णिका घाट को भगवान शिव ने अनंत शांति का वरदान दिया है। इस घाट की विशेषता है कि यहां चिता की आग कभी शांत नहीं होती है, यानी यहां हर समय किसी ना किसी का शवदाह हो रहा होता है। इस घाट को लेकर कई जनश्रुतियां हैं।

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एक कथा के अनुसार यहां पर भगवान विष्णु ने हजारों वर्ष तक इसी घाट पर भगवान शिव की आराधना की थी। विष्णु जी ने शिवजी से वरदान मांगा कि सृष्टि के विनाश के समय भी काशी को नष्ट न किया जाए। भगवान शिव और माता पार्वती विष्णु जी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर यहां आए थे। तभी से मान्यता है कि यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती के लिए यहां स्नान कुंड का निर्माण किया था।

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जिसे लोग अब मणिकर्णिका कुंड के नाम से जानते हैं। स्नान के दौरान माता पार्वती का कर्ण फूल कुंड में गिर गया, जिसे महादेव ने ढूंढ कर निकाला। देवी पार्वती के कर्णफूल के नाम पर इस घाट का नाम मणिकर्णिका हुआ। इस घाट की एक और मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने देवी सती के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार इसी घाट पर किया था। जिस कारण से इसे महाश्मशान भी कहते हैं। मोक्ष की चाह रखने वाला इंसान जीवन के अंतिम पड़ाव में यहां आने की कामना करता है। तो वहीं इससे जुड़ी एक और हैरान कर देने वाली बात ये है कि यहां पर साल में एक दिन ऐसा भी होता है जब नगर बधु पैर में घुंघरू बांधकर यहां नृत्य करती हैं।

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और ये कार्यक्रम चैत्र नवरात्र की सप्तमी की रात में होता है। महाश्मशान पर अनूठी साधना की परंपरा श्मशान नाथ महोत्सव का हिस्सा है। मौत के मातम के बीच वे नाचती-गाती हैं। और नाचते हुए वे ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि उनको अगले जन्म में ऐसा जीवन ना मिले। ये परंपरा अकबर काल में आमेर के राजा सवाई मान सिंह के समय से शुरू होकर अब तक चली आ रही है। मान सिंह ने ही 1585 में मणिकर्णिका घाट पर मंदिर का निर्माण करवाया था।

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श्मशान नाथ उत्सव में महाश्मशान की वजह से जब कोई कलाकार संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए तैयार नहीं हुआ तो मानसिंह ने नगर वधुओं को आमंत्रण भेजकर बुलवाया। वे इसे स्वीकार कर पूरी रात महाश्मशान पर नृत्य करती रहीं। तब से यह उत्सव काशी की परंपरा का हिस्सा बन गया।

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