Edited By Jyoti,Updated: 26 Jun, 2022 11:16 AM
हिंदू धर्म में ऐसे अनेक जीव हैं जिन्हें खासा महत्व है प्रदान है। इन्हीं में से एक जीव हैं सर्प जिसे आम भाषा में हम नाग भी कह देते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार ये देवों के देव महादेव
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हिंदू धर्म में ऐसे अनेक जीव हैं जिन्हें खासा महत्व है प्रदान है। इन्हीं में से एक जीव हैं सर्प जिसे आम भाषा में हम नाग भी कह देते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार ये देवों के देव महादेव के गले में सुशोभित हैं। जिस कारण इन्हें पूज्नीय माना जाता है। परंतु दूसरी ओर चूंकि ये अधिक जहरीले होते हैं इसलिए प्रत्येक व्यक्ति इनसे डरता है। परंतु क्या आप जानते हैं शिव जी के आभूषण बने सर्प को देश में स्थित कई मंदिर भी समर्पित है।
जी हां, बताया जाता है हमारे देश में इनका एक ऐसा मंदिर जहां 1-2 नहीं बल्कि एक साथ 30 हज़ार सांप हैं। आपको जानकर हैरानी जरूर हो रही होगी तो लेकिन ये सच है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यही है और इसी विशेषता के कारण इस मंदिर के सर्प मंदिर के नाम से जाना जाता है। तो आइए जानते हैं कहां है ये अद्भुत मंदिर-
केरल के मन्नारशाला से 37 कि.मी दूर सर्प मंदिर स्थित है, जो नागराज और उनकी अर्धांगिनी नागयक्षी को समर्पित है। कहा जाता है इस मंदिर के हर कोने के हर हिस्से में 30 हज़ार सापों की प्रतिमा स्थापित है। ये मंदिर लगभग 16 एकड़ के भूभाग में फैला हुआ है। तो चलिए अब बताते हैं मंदिर से जुड़ा इतिहास। इस मंदिर से जुड़ी किंवदंतियों के अनुसार महाभारत काल में खंडावा नामक एक वन प्रदेश था। जिसे किसी कारण वश जला दिया गया था, जिसका एक हिस्सा बच गया था। ऐसा कहा जाता है कि वन के सभी सर्पों के साथ अन्य कई जीव जंतुओं ने यहां शरण ले ली। मन्नारशाला वही जगह बताई जाती है। मंदिर परिसर से ही लगा हुआ एक नम्बूदिरी का साधारण सा खानदानी घर है।
बताया जाता है कि मंदिर के मूलस्थान में पूजा अर्चना आदि का कार्य वहां के नम्बूदिरी घराने की बहू निभाती है। उन्हें वहां अम्मा कह कर पुकारा जाता है। हैरान करने वाली बात ये है कि शादी शुदा होने के बावज़ूद ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए दूसरे पुजारी परिवार के साथ अलग कमरे में निवास करती हैं।
इस बारे में एक मान्यता ये है कि उस खानदान की एक स्त्री निस्संतान थी। उसकी प्रार्थना से वासुकी प्रसन्न हुए और जिससे उसे अपनी अधेड़ उम्र में एक पांच सर लिया हुआ नागराज और एक बालक को जन्म दिया। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थापित प्रतिमा उसी नागराज की है। लोक मान्यताओं की मानें तो यहां नागराज के दर्शन से निस्संतान दंपति को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
लेकिन इसके लिए दंपति को कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। दंपति को मंदिर से लगे तालाब बावड़ी में नहाकर गीले कपडों में दर्शन हेतु जाना होता है और अपने साथ चौड़े मुंह वाला एक कांसे का पात्र लेकर जाना होता है। बता दें यहां इसे वहां उरुली कहा जाता है। मंदिर में उस उरुली को पलट कर रखने से संतान प्राप्ति के अलावा अन्य मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं और जब मनोकामना पूरी हो जाती हैं तो लोग यहां आते हैं और उरुली को उठाकर सीधा रखकर अपनी श्रद्धा अनुसार चढ़ावा चढ़ाते हैं। तो वहीं इस मंदिर में नागदेवता की पूजा करने से कुंडली का कालसर्प दोष भी खत्म हो जाता है।