Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Apr, 2024 07:26 AM
प्राचीन भारत के इतिहास पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि यहां महिलाओं को आदरपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है। मनुस्मृति में नारियों के
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Manusmriti: प्राचीन भारत के इतिहास पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि यहां महिलाओं को आदरपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है। मनुस्मृति में नारियों के महत्व पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं और जहां इनका अनादर होता है, वहां के समस्त कार्य असफल हो जाते हैं। मनुस्मृति में मनु के अनुसार नारी समाज का आधार है। जैसे बिना भूमि के कोई भी पेड़-पौधा नहीं हो सकता, वैसे ही बिना नारी के कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हो सकती।
देवी स्वरूपा है नारी
नारी जाति के सम्बन्ध में स्मृतिकारों के विचार बहुत ही उत्कृष्ट हैं। इनके विचार में नारियां साक्षात् देवी स्वरूपा हैं।
मनु कहते हैं, ‘‘पिता, भ्राता, पति, देव, जो भी अपना विशेष कल्याण चाहते हैं, वे स्त्रियों का आदर करें और वस्त्र, आभूषण आदि से विभूषित करें, क्योंकि जिस कुल में भगिनी, पत्नी, कन्या, पुत्रवधू और माता आदि स्त्रियां दुखी रहती हैं, वह कुल सदा स्मृद्धि एवं उन्नति की ओर अग्रसर होता है।’’
उनका यह भी कहना है, ‘‘ जिस कुल में पत्नी को पति से संतोष है और पत्नी से पति संतुष्ट है, वहां सदा कल्याण होता है।’’
घर की स्वामिनी है स्त्री
मनुस्मृति में यह बात कही गई है कि घर की स्वामिनी स्त्री है। पुरुष केवल उपार्जन करता है, उसका संग्रह और उपयोग घर की गृहिणी के अधीन होता है। पति का सर्वस्व स्त्री का है। ‘‘सभी आश्रमों का आधारभूत गृहस्थ- आश्रम का आधार ही नारी है। नारी के बिना गृहस्थ आश्रम की कल्पना करना असम्भव है, इसलिए मनु ने नारी को गृहस्थ आश्रम के आधार का मूल माना है।’’
दाम्पत्य जीवन के स्थायित्व के सम्बन्ध में पारिवारिक विश्वास ही पति-पत्नी का बड़ा धर्म है। एक परिणय सूत्र में बंध जाने के बाद पति-पत्नी का यह कर्तव्य हो जाता है कि उनमें कोई विभेद उत्पन्न न हो और वे एक-दूसरे के प्रति आस्थावान रहें।
पति के लिए निर्देश
मनुस्मृति में पति के लिए स्पष्ट निर्देश है कि वह केवल अपनी पत्नी में अनुरक्त रहे। सभी धार्मिक कृत्यों का निष्पादन पति-पत्नी को मिलकर करना चाहिए, जिससे मृत्यु के उपरांत भी उन्हें सुख की प्राप्ति हो सके।
मनु के अनुसार, ‘‘स्त्री और पुरुष परमसत्ता के दो भाग हैं। मनुष्य के लिए जितने भी संस्कार करने आवश्यक हैं, उनमें से अधिकांश संस्कार पति-पत्नी के सहयोग द्वारा ही सम्भव हैं।’’
विवाह तथा स्त्री-पुरुष सम्बन्ध परम्परागत भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिक प्रेम एवं तादात्मय की भावना पर आधारित हैं। मनु की दृष्टि में परिवार प्रणाली के परित्याग के लिए स्थान नहीं है। पति-पत्नी का संबंध मृत्यु के उपरांत भी बना रहता है।
गृहलक्ष्मी है नारी
मनुस्मृति में पत्नी को घर की देवी कहा गया है। नारी गृहलक्ष्मी है, उसके सानिध्य से देव प्रसन्न होते हैं। इस तरह कन्या, बहन, माता और पत्नी सभी रूपों में वह पुरुष के स्नेह, प्रेम और आदर की अधिकारिणी है। वास्तव में नारी सभी में वंदनीय एवं पूजनीय है। वेदों में नारी को साम्राज्ञी के रूप में स्वीकृत किया गया है।
पत्नी-पति का आदर करती है और पति-पत्नी का सम्मान करता है। इस प्रकार मनु ने नारी को गृहस्थ जीवन आधार माना है। मनु कहते हैं कि स्त्री रहित घर जंगल से भी बढ़कर है। नारी की उपस्थिति से गृह देवता प्रसन्न होते हैं।