Martyrdom Day of Shaheed Udham Singh- कुछ ऐसी थी शेर सिंह के शहीद ऊधम सिंह बनने की कहानी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 31 Jul, 2024 07:55 AM

martyrdom day of shaheed udham singh

महान योद्धा उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर, 1899 को पंजाब के सुनाम कस्बे के एक गरीब परिवार में माता नारायण देवी की कोख से पिता टहल सिंह के घर हुआ। ऊधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था। सात साल की

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Martyrdom Day of Shaheed Udham Singh 2024: महान योद्धा उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर, 1899 को पंजाब के सुनाम कस्बे के एक गरीब परिवार में माता नारायण देवी की कोख से पिता टहल सिंह के घर हुआ। ऊधम सिंह का असली नाम शेर सिंह था। सात साल की उम्र में उधम अनाथ हो गए, जिसके बाद उधम और उनके भाई मुख्ता सिंह को अमृतसर के सैंट्रल खालसा अनाथालय में भेज दिया गया। यहीं पर शिक्षा के साथ-साथ मैकेनिक का काम सीख कर दक्षता हासिल की।

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अनाथालय में लोगों ने दोनों भाइयों को नया नाम दिया। शेर सिंह बन गए ऊधम सिंह और मुख्ता सिंह बन गए साधु सिंह। 1917 में ऊधम के भाई साधु की भी मौत हो गई और वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1918 में ऊधम ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। उन्हीं दिनों देश को आजाद करवाने के लिए पूरे देश मे संघर्ष चल रहा था जिसे दबाने के लिए अंग्रेज जम कर नौजवानों पर अत्याचार कर रहे थे। अंग्रेजों के इस अत्याचार के विरोध में क्रांतिकारी नेताओं ने 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी वाले दिन पंजाब की धार्मिक नगरी अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक विशाल जनजागरण जनसभा करने का ऐलान किया।

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इससे अंग्रेजी हकूमत पूरी तरह से बौखला गई और विशाल जनसभा को कुचलने के लिए पंजाब का गवर्नर माईकल ओडवायर भारी पुलिस लेकर वहां पहुंच गया। क्रांतिकारी नेता मंच से अंग्रेजों के अत्याचार की दास्तान देशवासियों को बता रहे थे, तो गवर्नर माईकल ओडवायर के आदेश से सेना और पुलिस ने असहाय और निहत्थे शांतिप्रिय भारतीयों को चारों ओर से घेर कर गोलियों की बौछार कर दी, जिससे हजारों आजादी के दीवाने भारतीय शाहिद हो गए और उनके खून से जलियांवाला बाग की धरती लाल हो गई।

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इस घटना से क्रोधित युवा ऊधम सिंह ने उन शहीदों की लाशों के बीच मे खड़े होकर शपथ ली कि इस हत्याकांड के जिम्मेदार जनरल डायर और गवर्नर माईकल ओडवायर को मौत की सजा देने तक चैन से नहीं बैठेगा।

ऊधम सिंह ने क्रांतिकारी डाक्टर किचलू से मिलकर अपनी इच्छा से अवगत करवाया, जिन्होंने ऊधम सिंह की इच्छा का सम्मान करते हुए क्रांतिकारियों से उसकी मुलाकात करवा दी। इसी दौरान इंकलाबी पार्टी द्वारा अंग्रेज पुलिस इंस्पैक्टर सांडर्स की हत्या के बाद हुई धरपकड़ में इन्हें चार रिवाल्वरों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया और चार साल की सजा हुई।  

12 मार्च, 1940 को इन्हें समाचार पत्रों से पता चला कि 13 मार्च को कैकस्टन हाल में होने वाली एक जनसभा में माईकल ओडवायर भी भाग लेने वाला है। ऊधम सिंह 13 मार्च को एक मोटी किताब में अपने रिवाल्वर छिपा कर पूरी तैयारी से कैकस्टन हाल पहुंच गए और अपनी रिवाल्वर की गोलियों की बौछार से जालिम ओडवायर को वहीं ढेर कर जलियांवाला बाग के नरसंहार का बदला ले लिया।
5 जून, 1940 को ऊधम सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई और 31 जुलाई को भारत के इस शेर ने आजादी के लिए शुरू हुए महायज्ञ में अपने प्राणों की सर्वोच्च आहुति डाल दी।

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