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Matangi Jayanti 2020: हकीक की माला से करें इस चमत्कारी मंत्र का जाप

Edited By Jyoti,Updated: 26 Apr, 2020 12:22 PM

matangi jayanti 2020

मान्यता के अनुसार जीवन में माता के प्रेम की कमी या माता को कोई कष्ट हो आकाल या बाढ़ से पीड़ित हो तो देवी मातंगी के निम्न मंत्र का जाप करने से सब परेशानियां खत्म हो जाती हैं।

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मान्यता के अनुसार जीवन में माता के प्रेम की कमी या माता को कोई कष्ट हो आकाल या बाढ़ से पीड़ित हो तो देवी मातंगी के निम्न मंत्र का जाप करने से सब परेशानियां खत्म हो जाती हैं। इसके साथ ही ये भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त कर लेता है, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है।  

महा मंत्र- ‘क्रीं ह्रीं मातंगी ह्रीं क्रीं स्वाहा:’
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तो वहीं अन्य मान्यताओं के अनुसार देवी मातंगी की साधना रात्रिकालीन है, इसलिए इसे रात को 9 बजे के बाद ही शुरू करना चाहिए। सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र पहिनकर पश्चिम दिशा की ओर मुख करके लाल आसन पर बैठ जाएं और अपने सामने लाल वस्त्र बिछा लें और साधना में मां मातंगी का चित्र, यंत्र और लाल मूंगा माला का प्रयोग करे परंतु सामग्री उपलब्ध न हो तो किसी ताबे की प्लेट में स्वास्तिक बनाकर और उस पर एक सुपारी स्थापित कर दें और उसे ही यंत्र मानकर सच्चे मन से इसकी पूजा करें।  

बता दें मंत्र जाप के लिए स्फटिक माला, लाल हकीक माला, मूंगा माला, रुद्राक्ष माला में से किसी भी माला का उपयोग हो सकता है।

ध्यान मंत्र-
ॐ श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैर्बिभ्रतीं,
पाशं खेटमथांकुशं दृढमसिं नाशाय भक्तद्विषाम्।
रत्नालंकरणप्रभोज्ज्वलतनुं भास्वत्किरीटां शुभां,
मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धिप्रदाम्।।

बीज मंत्र-
ॐ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा

कवच स्तोत्र-
ॐ शिरो मातंगिनी पातु भुवनेशी तु चक्षुषी।
तोडला कर्ण युगलं त्रिपुरा वदनं मम।।३।।

पातु कण्ठे महामाया हृदि माहेश्वरी तथा।
त्रिपुष्पा पार्श्वयोः पातु गुदे कामेश्वरी मम।।४।।

ऊरुद्वये तथा चण्डी जंघयोश्च हरप्रिया।
महामाया पादयुग्मे सर्वांगेषु कुलेश्वरी।।५।।

अंगं प्रत्यंगकं चैव सदा रक्षतु वैष्णवी।
ब्रह्मरन्ध्रे सदा रक्षेन्मातंगीनामसंस्थिता।।६।।

रक्षेन्नित्यं ललाटे सा महापिशाचिनीति च।
नेत्रयोः सुमुखी रक्षेद्देवी रक्षतु नासिकाम्।।७।।

महापिशाचिनीं पायान्मुखे रक्षतु सर्वदा।
लज्जा रक्षतु मां दन्ताञ्चोष्ठौ सम्मार्जनीकरा।।८।।

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चिबुके कण्ठदेशे च ठकारत्रितयं पुनः।
स-विसर्गं महादेवि! हृदयं पातु सर्वदा।।९।।

नाभिं रक्षतु मां लोला कालिकावतु लोचने।
उदरे पातु चामुण्डा लिंगे कात्यायनी तथा।।१०।।

उग्रतारा गुदे पातु पादौ रक्षतु चाम्बिका।
भुजौ रक्षतु शर्वाणीं हृदयं चण्डभूषणा।।११।।

जिह्वायां मातृका रक्षेत्पूर्वे रक्षतु पुष्टिका।
विजया दक्षिणे पातु मेधा रक्षतु वारुणे।।१२।।

नैर्ऋत्यां सुदया रक्षेद्वायव्यां पातु लक्ष्मणा।
ऐशान्यां रक्षेन्मां देवी मातंगी शुभकारिणी।।१३।।

रक्षेत्सुरेशी चाग्नेये बगला पातु चोत्तरे।
ऊर्घ्वं पातु महादेवि देवानां हितकारिणी।।१४।।

पाताले पातु मां नित्यं वशिनी विश्वरूपिणी।
प्रणवं च ततो माया कामबीजं च कूर्चकं।।१५।।

मातंगिनी ङेयुतास्त्रं वह्निजाया वधिर्मनुः।
सार्द्धैकादशवर्णा सा सर्वत्र पातु मां सदा।।१६।।
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