Edited By Niyati Bhandari,Updated: 28 Jan, 2025 08:04 AM
Chitkul India's Last Village: बर्फ से लदी पर्वत चोटियों से सटे हरे-भरे घास के मैदानों के बीच से निकलती छोटी-छोटी नदियां, जिनकी सतह पर मौजूद सफेद पत्थरों पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो अविरल धारा पर उभरते सफेद मोती जैसे प्रतिबिंब को देख ऐसा लगता...
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Chitkul India's Last Village: बर्फ से लदी पर्वत चोटियों से सटे हरे-भरे घास के मैदानों के बीच से निकलती छोटी-छोटी नदियां, जिनकी सतह पर मौजूद सफेद पत्थरों पर जब सूरज की किरणें पड़ती हैं, तो अविरल धारा पर उभरते सफेद मोती जैसे प्रतिबिंब को देख ऐसा लगता है कि कहीं यह किसी चित्रकार की कल्पना तो नहीं। भारत-तिब्बत सीमा पर बसा छितकुल गांव ऐसी ही एक जगह है। इसे भारत का अंतिम गांव भी कहा जाता है। यह समुद्र तल से करीब 3450 मीटर की ऊंचाई पर हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित बास्पा घाटी का अंतिम और ऊंचा गांव है। इस गांव को किन्नौर जिले का क्राऊन भी कहा जाता है। गांव में तीन प्राचीन मंदिर निर्मित थे जो पहाड़ी परम्परागत वास्तु शिल्प के अद्भुत उदाहरण माने जाते थे।
Temples in Chitkul: एक देवी माथी का, दूसरा शिव मंदिर और तीसरा प्राचीन बौद्ध मंदिर। अति प्राचीन होने के कारण इन मंदिरों को नया रूप दे दिया गया है और अब माथी देवी का परिसर नए रूप में अति आकर्षक और उत्कृष्ट पहाड़ी शैली में बनाया गया है। मंदिरों को प्राचीन स्वरूप देने का प्रयास किया गया है।
![PunjabKesari Mathi Temple Chitkul](https://static.punjabkesari.in/multimedia/08_59_147576119temple-1.jpg)
Mathi Temple: पहले माथी देवी का मुख्य मंदिर तीन मंजिला था, जिसकी छत लकड़ी की शहतीरों से बनी थी। शिखर पर लकड़ी का अति सुंदर ताज था, जिसके किनारे नक्काशी की हुई झालरें थीं। इसके मध्यभाग में लकड़ी का लघु शिखर था। सबसे ऊपर वाली मंजिल के तीनों किनारों में लकड़ी का बरामदा था जो बंद था, परन्तु उस पर सुंदर नक्काशी की हुई थी। मंदिर लगभग तीन फुट ऊंचे चबूतरे पर निर्मित किया गया था, जिसका प्रवेशद्वार अति आकर्षक था। तकरीबन 600 वर्ष पूर्व निर्मित मंदिर की जगह अब नए मंदिर बनाने की आवश्यकता थी। इसी दृष्टि से देवता कमेटी और गांव के लोगों ने मिलकर माथी देवी परिसर को अत्यंत नया रूप दे दिया है।
Mathi Temple Chitkul ग्राम देवी हैं छितकुल माथी
छितकुल माथी यानी छितकुल गांव की माता वहां की ग्राम देवी है, जिसे रानी रणसंगा भी कहा जाता है। देवी के यहां आने की अत्यंत रोचक कथा बताई जाती है। पुराने लोगों के साथ देवी का प्रवक्ता भी देव-छाया में कथा दोहराया करता है। देवी ने हिमालय की यात्रा वृंदावन से आरंभ की थी।
वह मथुरा और बद्रीनाथ से होती हुई तिब्बत पहुंची। उसके बाद वह गढ़वाल गई। तत्पश्चात बुशहर रियासत की राजधानी सराहन आई और बरुआ खड्ड के किनारे पहुंच गई। इसके पार देवी ने देखा कि वह क्षेत्र अथवा राज्य सात भागों में बंटा है। शौंग गांव का देवता नरेसन अर्थात नारायण उसका भतीजा था। देवी ने इस खंड को संभालने के आदेश दिए।
उसके बाद वह चांसू के लिए चल पड़ी जहां उसने अपने दूसरे भतीजे नारायण को उस क्षेत्र की देख-रेख का उत्तरदायित्व सौंप दिया। उसके बाद वह कामरू पहुंची जहां उसके पति बद्रीनाथ का राज्य था। कुछ दिन वहां रुकने के बाद वह सांगला गई, जहां उसका एक और भतीजा बोरिंग नाग रुपिन घाटी को संभाले हुए था। तदोपरांत वह बटसेरी गई, जहां भी उसके पति बद्रीनाथ का आधिपत्य था। इसे कामरू के बद्रीनाथ का भाई भी माना जाता है।
Mathi Devi temple Chitkul Kinnaur Himachal Pradesh: इसी तरह रकछम में भी देवी ने अपने एक और भतीजे शमशीर को उस जनपद की देख-रेख के लिए नियुक्त कर दिया तथा स्वयं छितकुल पहुंच गई। यह स्थान उसे अत्यंत प्रिय और शांत लगा और देवी ने स्थाई तौर पर रहने का निर्णय लिया ताकि यहां से वह सातों क्षेत्रों की कुशलता से देख-रेख कर सके। देवी के आने से छितकुल गांव की लोकप्रियता और समृद्धि खूब बढ़ने लगी। लोगों ने अपनी फसलों और पशुओं के साथ गांव और अपने परिवार की दहलीज पर बड़ी सुख-समृद्धि महसूस की जिससे उनकी अगाध श्रद्धा देवी पर बढ़ती चली गई। देवी का भव्य मंदिर निर्मित हुआ और साथ अन्य मंदिर भी बने। सुंदर रथाड बनाया गया और देवी के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं उस पर प्रतिष्ठित हुईं।
![PunjabKesari Mathi Temple Chitkul](https://static.punjabkesari.in/multimedia/08_59_207889800temple-4.jpg)
Last stop of Kinnar Kailash किन्नर कैलाश का आखिरी पड़ाव
सम्पूर्ण जनपद में देवी माथी की बहुत पूछ और लोकप्रियता है। किन्नौर की धार्मिक यात्रा का किन्नर कैलाश का छितकुल आखिरी पड़ाव माना जाता है, क्योंकि यहां से यात्री अब बसों और दूसरे वाहनों द्वारा सड़क मार्ग से कड़छम और अन्य गंतव्य स्थलों तक चले जाते हैं।
परिक्रमा से लौटते समय यात्री ललान्ति अर्थात ला-लनती जोत पार करने के बाद कन्डो से देवी माथी को अर्पित करने के लिए डोडरो, रोसकोलच, जबीसड व तीशुर आदि विशेष प्रजाति के अति सुगंधित पुष्प ले जाते हैं, लेकिन देवी ने यात्रियों को सख्त हिदायत दी कि वे इन दुर्लभ फूलों को तोड़कर न लाएं इसलिए अब कोई भी यात्री इन फूलों को तोड़ने का साहस नहीं करता।
![PunjabKesari Mathi Temple Chitkul](https://static.punjabkesari.in/multimedia/08_59_250389770temple-7.jpg)
गांव में एक अन्य देवता कारू की पूजा भी की जाती है, जिसे देवी का दामाद माना जाता है। यह बनवासी देव है। छितकुल वही प्राचीन और ऐतिहासिक गांव है जहां तिब्बती धर्मगुरु व महानुवादक रत्नभद्र ने चौथे बौद्ध मठ का गांव के बिल्कुल शिखर पर निर्माण करवाया था, लेकिन भारी बर्फबारी और ग्लेशियर के गिरने की चपेट में आकर यह मठ पूरी तरह ढह गया था। इसके चंद अवशेष इसके निर्माण स्थल पर आज भी देखे जा सकते हैं। लोकविश्वास है कि चिरकाल में छितकुल बौद्ध अनुयायियों का प्रधान अध्यात्मिक केंद्र था जहां 360 लामा रहा करते थे।
यह भी मान्यता है कि इस बौद्ध मठ में धार्मिक अनुष्ठान हेतु प्रत्येक वर्ष गुगे के खोलीड मठ से 50 बौद्ध भिक्षुओं के आने की परम्परा रही है, क्योंकि यह मठ भी रत्नभद्र द्वारा स्थापित किया गया था। देवी माथी के साथ उनका यह करार था कि इन भिक्षुओं का सारा व्यय देवी के खजाने से किया जाता रहेगा। यह परम्परा बहुत साल चली। वर्तमान मठ जो प्राचीन बौद्ध मठ के ढहने के बहुत बाद निर्मित हुआ है उसमें धातुओं से बनी बुद्ध व बौद्ध देवी-देवताओं की प्रतिमाएं विद्यमान हैं। उनके बीच एक अति प्राचीन प्रतिमा रखी रहती है।
माना जाता है कि यह प्रतिमा गांव के शिखर पर विद्यमान बौद्ध मठ में स्थापित थी। किन्नर कैलाश परिक्रमा करके जो यात्री यहां आते हैं वे इस बौद्ध मठ में दीपदान तथा पूजा-अर्चना के उपरांत देवी माठी के मंदिर में अपनी इच्छानुसार दान देना नहीं भूलते। छितकुल गांव को चीन के साथ लगती सीमा का भी अंतिम गांव माना जाता है।