Edited By Jyoti,Updated: 01 Dec, 2019 05:19 PM
हिंदू धर्म के समस्त देवी-देवताओं के भी इष्ट भोलेलाथ का मूल मंत्र "ॐ"। जिस कारण इस धर्म से संबंध रखने वाला हर व्यक्ति इसका जाप करता है।
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हिंदू धर्म के समस्त देवी-देवताओं के भी इष्ट भोलेलाथ का मूल मंत्र "ॐ"। जिस कारण इस धर्म से संबंध रखने वाला हर व्यक्ति इसका जाप करता है। परंतु आज भी ऐसे कई लोग होंगे जो इसका निरंतर जाप तो करते होंगे लेकिन इसके अर्थ से आज भी अंजान होंगे। आज हम अपने इस आर्टकिल के माध्यम से आपको "ॐ" शब्द का अर्थ बताएंगे। साथ ही जानेंगे इससे जुड़ी अन्य बातें। कहा जाता है “ॐ” कार दिव्य नाद है। बता दें नाद एक संगीत उपकरण है। कहा जाता है यह केवल एक मंत्र नहीं बल्कि परम संगीत है। संपूर्ण सृष्टि के सभी स्वर इस एक शब्द “ॐ” में पिरोए हैं। यहां तक कि पेड़ों पर बैठे पखेरुओं का कलरव, उच्च हिम शिखरों की शांति, पहाड़ों से उतरते झरनों की मर्मर, वृक्षों से गुजरती हवाओं की सरसर, महासागरों में लहरों का तर्जन, आकाश में बादलों का गर्जन सभी का सार है “ओंकार”।
“ॐ” कार शब्द बीज है, कहा जाता है समस्त शब्द इसी से जन्मे हैं। इसी से उन्हें जीवन मिलता है और अंत समय में इसी में मिल जाना है। कुछ मान्यताओं की मानें तो वेद ही नहीं बाइबिल भी “ॐ” से ही उपजी है। गीता तथा गायत्री भी इसी से प्रकट हुई है।
इसीलिए वेद कहते हैं कि “ॐ” को जिन्होंने जान लिया, उनके लिए इसके बाद जीवन में कुछ और जानने के लिए शेष नहीं रहता। प्रचलित किंवदंतियों के मुताबिक बाइबिल भी इसी सच्चाई को दुहराती है कि प्रारंभ में ईश्वर था, और ईश्वर शब्द के साथ और फिर उसी शब्द से सब प्रकट हुआ।
सृष्टि का बीज है “ॐ” कार-
सृष्टि की सभी ऊर्जाओं का परम स्रोत है यह “ॐ” कार। अनन्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त ऊर्जा के विभिन्न स्तर, आयाम और ऊर्जा धाराएं “ॐ” कार से ही प्रवाहित हुई हैं। यही कारण है कि उपनिषद् में वर्णन मिलता है “ॐ” कार से सब पैदा हुआ तथा “ॐ” कार में सभी का जीवन है और अन्त में सब कुछ “ॐ” कार में ही विलीन होगा। सृष्टि के सूक्ष्मतम से महाविराट् होने तक के सभी रहस्य इस “ॐ” कार में ही समाए हैं।
ध्यान बीज है है “ॐ” कार-
कहा जाता है जो भी इसका ध्यान करता है उसके सभी रहस्य उजागर होते हैं, शक्ति के स्रोत उफ़नते हैं। यह “ॐ” कार हममें है, तुममें है, सबमें है। परंतु अभी यह बन्धन में है और जब तक यह बन्धन में रहेगा मनुष्य के भीतर रुदन का हाहाकार मचा रहेगा तथा वेदनाएं हमें सालती रहेंगी।
“ॐ” कार के बंधन मुक्त होते ही रुदन की चीत्कार संगीत के उल्लास में बदल जाती है। बंधन से मुक्ति केवल “ॐ” कार के ध्यान से ही संभव है।