Mokshagundam Visvesvaraya Story: मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के आगे अंग्रेज भी झुकाते थे सिर, 101 वर्ष तक किया इंजीनियरिंग के क्षेत्र में काम

Edited By Prachi Sharma,Updated: 23 Sep, 2024 10:40 AM

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बात उस समय की है जब भारत अंग्रेजी गुलामी का दंश झेल रहा था। उस दौर में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने अपनी इंजीनियरिंग के कौशल के साथ आम लोगों के हित का ऐसा गारा

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Mokshagundam Visvesvaraya story: बात उस समय की है जब भारत अंग्रेजी गुलामी का दंश झेल रहा था। उस दौर में मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने अपनी इंजीनियरिंग के कौशल के साथ आम लोगों के हित का ऐसा गारा तैयार किया कि अंग्रेज भी उनकी तारीफ किए बिना नहीं रह सके।

ब्रिटिश भारत में एक रेलगाड़ी चली जा रही थी जिसमें ज्यादातर अंग्रेज सवार थे। एक डिब्बे में एक भारतीय यात्री गंभीर मुद्रा में बैठा था। सांवले रंग और मंझले कद का वह यात्री सादे  कपड़ों में था और वहां बैठे अंग्रेज उन्हें अनपढ़ समझकर मजाक उड़ा रहे थे।

अचानक उसने उठकर गाड़ी की जंजीर खींच दी। ट्रेन कुछ ही पलों में रुक गई। सभी यात्री चेन खींचने वाले को भला-बुरा कहने लगे।

थोड़ी देर में गार्ड आ गया और सवाल किया कि जंजीर कितने खींची तो उसने उत्तर दिया, ‘‘मेरा अंदाजा है कि यहां से लगभग कुछ दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है।’’

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गार्ड ने पूछा, ‘‘आपको कैसे पता ?’’

वह बोले, ‘‘गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आया है और इसकी आवाज से मुझे खतरे का आभास हो रहा है।’’

गार्ड उन्हें लेकर जब कुछ दूर पहुंचा तो देख कर दंग रह गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं। वह सांवले से व्यक्ति थे - मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया।

उनके पिता संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे लेकिन जब विश्वेश्वरैया 12 वर्ष के थे, उनका निधन हो गया। परिवार आॢथक संकट से जूझ रहा था, लिहाजा विश्वेश्वरैया गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ते रहे। बी.ए. करने के बाद उन्होंने कुछ समय शिक्षक के रूप में भी काम किया। उनकी योग्यता देख मैसूर सरकार ने उन्हें स्कॉलरशिप दी, जिसके बाद उन्होंने पुणे के साइंस कालेज में सिविल इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में दाखिला लिया और प्रथम स्थान प्राप्त किया। इंजीनियर बनते ही उनकी योग्यता देख महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक जिले के सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया।

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इंजीनियर के रूप में विश्वेश्वरैया को असली ख्याति मिली पुणे के खड़कवासला बांध की भंडारण क्षमता में बिना ऊंचाई बढ़ाए बढ़ोतरी करने से। बांधों की जल भंडारण स्तर में वृद्धि करने के लिए विश्वेश्वरैया ने स्वचालित जलद्वारों का उपयोग खड़कवासला बांध पर किया था। वर्ष 1909 में उन्हें मैसूर राज्य का मुख्य अभियंता नियुक्त किया गया।

कृष्णराज सागर बांध के निर्माण के कारण मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का नाम पूरे विश्व में सबसे अधिक चर्चा में रहा। इसका निर्माण स्वतंत्रता के करीब 40 वर्ष पहले हुआ था। वर्ष 1912 में उन्हें मैसूर राज्य का दीवान नियुक्त किया गया। उन्होंने चंदन तेल फैक्ट्री , साबुन फैक्ट्री, धातु फैक्ट्री  , क्रोम टेनिंग फैक्टरी प्रारंभ की। बांध निर्माण के साथ-साथ औद्योगिक विकास में भी उनका योगदान कम नहीं है। वह उन शुरुआती लोगों में से एक थे, जिन्होंने बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में वैमानिकी एवं इंजीनियरिंग जैसे अनेक विभागों को आरंभ करने का स्वप्न देखा था। वह वर्ष 1918 में मैसूर के दीवान के रूप में सेवानिवृत्त हो गए। उन्हें 1955 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया। 101 वर्ष की दीर्घायु में काम करते रहने वाले विश्वेश्वरैया का कहना था कि ‘जंग लग जाने से बेहतर है, काम करते रहना।’

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