Edited By Jyoti,Updated: 02 Dec, 2022 01:02 PM
एक जमाना था जब लोग भगवान से डरते थे और कहा करते थे कि उसकी लाठी बेआवाज है। उसके यहां देर है-अंधेर नहीं। तब वे गुनाह करने से पहले कई बार सोचते थे क्योंकि उन्हें पता था कि
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एक जमाना था जब लोग भगवान से डरते थे और कहा करते थे कि उसकी लाठी बेआवाज है। उसके यहां देर है- अंधेर नहीं। तब वे गुनाह करने से पहले कई बार सोचते थे क्योंकि उन्हें पता था कि उनके गुनाहों का बाकायदा हिसाब रखा जा रहा है और मरने के बाद उन्हें नरक में भिजवाया जा सकता है, जहां वे हमेशा उसकी ज्वाला में जला करेंगे।
फिर एक ऐसा जमाना आया जब लोगों के दिलों से भगवान का डर निकल गया। कुछ स्वनाम धन्य दार्शनिकों ने घोषित कर दिया कि न कोई भगवान है, न कोई नरक। भगवान ने यह सब सुना और खामोश रहा।
एक जमाना था जब संतान माता-पिता से डरती थी। वह कोई बुरी बात करने से पहले सोचती थी कि मां-बाप को क्या मुंह दिखाएंगे। संतान यह भी समझती थी कि माता-पिता उससे अधिक समझदार और अनुभवी हैं।
फिर वह जमाना भी आया जब कुछ मनचलों ने यह शोशा उड़ा दिया कि मां-बाप संतान से अधिक बुद्धिमान नहीं होते। उनके विचार घिसे-पिटे तथा पुराने दकियानूसी हुआ करते हैं। वे नहीं जानते कि दुनिया कितनी बदल गई है। हम तो वही करेंगे जो हमें अच्छा लगता है। यदि वे विरोध करेंगे तो हम और भी मचल जाएंगे।
नतीजा यह हुआ कि पहले संतान मां-बाप से डरती थी, अब मां-बाप संतान से डरने लगे तथा खामोश हो गए। एक जमाना था जब शागिर्द उस्ताद से डरा करते थे। वे जानते थे कि यदि उन्होंने कोई फिजूल हरकत की तो उस्ताद उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे।
उस्ताद के माथे पर जरा-सी भी शिकन पड़ती तो वे थर-थर कांपने लगते। जब वे पाठ याद करके नहीं लाते थे तो उनकी शामत आ जाती थी।
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फिर वह जमाना आया जब शागिर्दों ने उस्ताद के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और खुल्लम-खुल्ला कहने लगे कि इन उस्तादों को क्या आता है जो हम इनकी इज्जत करें। ये हम पर अकारण रौब डालते हैं। हमें सजा देने का इन्हें कोई अधिकार नहीं। पढ़ना या न पढ़ना हमारा निजी मामला है। उस्तादों ने यह सुना और खामोश हो गए।
एक जमाना ऐसा भी था जब लोग पुलिस से डरते थे। बड़े से बड़े गुंडे का पुलिस का नाम सुन कर रंग फक हो जाता था। यदि जुर्म करते समय उसे जरा भी शक पड़ जाता कि पुलिस आ रही है तो वह सिर पर पांव रख कर भाग जाता था। जब किसी स्थान पर कर्फ्यू लगाया जाता था तो कोई व्यक्ति पुलिस के डर के मारे घर से बाहर नहीं निकलता था।
फिर ऐसा जमाना आया जब लोगों ने पुलिस से दो-दो हाथ करने की ठानी। अत: जब पुलिस ने उन्हें दंगा-फसाद करने से रोका तो उन्होंने उस पर पत्थर बरसाए। वे पुलिस वालोंं की राइफलें तथा पगडिय़ां छीन कर ले जाने लगे।
जब उन्हें ऐसा करने से रोका गया तो उन्होंने कहा कि यह हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है कि हम पुलिस के आदेशों की अवहेलना करें। जब वह किसी अभियुक्त को पकड़ कर ले जाए तो उसे छुड़ाने के लिए पुलिस स्टेशन पर धावा बोल देते। पुलिस ने लोगों का जब यह रवैया देखा तब वह हाथों पर हाथ रख कर बैठ गई।
अब हर व्यक्ति परेशान है। बदहाल है। दिन-रात शिकायत करता है। गुंडों ने अशांति का बाजार गर्म कर रखा है। कोई व्यक्ति सुरक्षित नहीं। किसी व्यक्ति की इज्जत सुरक्षित नहीं। वह महसूस करता है कि उसकी जिंदगी से चैन हमेशा के लिए विदा हो गया है। हर ओर अंधकार ही अंधकार है। कई बार यूं लगता है जैसे भगवान, मां-बाप, उस्ताद तथा पुलिस उसकी बेबसी पर कहकहे लगा रहे हैं और एक आवाज में कह रहे हैं :