Edited By Jyoti,Updated: 23 May, 2020 11:11 AM
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एक बार महान मानवतावादी मार्टिन लूथर ने ईसाई धर्म में प्रचलित रूढ़ियों के विरोध में आवाज उठाई तो एक खास तबके ने उन्हें और उनके सहयोगियों को तरह- तरह से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
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एक बार महान मानवतावादी मार्टिन लूथर ने ईसाई धर्म में प्रचलित रूढ़ियों के विरोध में आवाज उठाई तो एक खास तबके ने उन्हें और उनके सहयोगियों को तरह- तरह से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। इन घटनाओं का मार्टिन लूथर पर तो कोई असरनहीं हुआ, लेकिन उनके शिष्यों में घोर निराशा छा गई।
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दिन-ब-दिन बढ़ती इन प्रताड़नाओं से उकता कर एक दिन मार्टिन लूथर के एक शिष्य ने उनसे कहा,'' अब तो हद हो गई है, आप अपनी सिद्धि व साधना से इन्हें अभिशाप दे दीजिए।''
मार्टिन लूथर ने कहा, ''ऐसा कैसे हो सकता है ?''
शिष्यबोला,"आपको प्रार्थना तो भगवान सुनते हैं, उनसे आपका सीधा संवाद होता है। आप उन्हें प्रार्थना में कह दें कि इन सब पर बिजली गिरे।"
मार्टिन लूथर ने कहा, "यदि मैं भी ऐसा ही विचार करने लगूं तो मुझमें और उनमें क्या अंतर रह जाएगा ?"
यह सुनकर शिष्य सोच में पड़ गया। उसने फिर कहा,'' लेकिन इन लोगों का अविवेक, अन्याय और नासमझी तो देखिए। आप जैसे सात्विक सज्जन और परोपकारी संत को ये न जाने क्या-क्या कहते हैं।''
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मार्टिन लूथर बोले,''यह देखना हमारा काम नहीं है कि क्या कहते हैं। हमें तो अपने ढंग से असत्य, अविवेक और विकृतियों को उखाड़ फैंकने का काम करना है। शेष सारा काम ईश्वर को स्वयं देखना है।''
शिष्य फिर भी संतुष्ट न हुआ। उसने पुनः विनग्रता से कहा, आप अपनी शक्ति आजमा कर ही उन्हें क्यों नहीं बदल देते ? आप तो सर्वसमर्थ हैं।''
इस पर मार्टिन लूथर ने कहा, मेरा काम है पाप का विसर्जन कर सत्य और शुभ को प्रोत्साहित करना। दूसरों को जो करना हो, करें। मेरा काम तो अपने रास्ते पर दृढ़तापूर्वक चलना है और सत्य व सदाचार ही मेरा धर्म है।''