Edited By Jyoti,Updated: 07 Jun, 2020 04:01 PM
एक ऋषि के आश्रम में दो छात्र अध्ययन करते थे। वेद, शास्त्र व पुराण आदि का अध्ययन करने के बाद दोनों के हृदय में यह अहंकार घर कर गया था
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एक ऋषि के आश्रम में दो छात्र अध्ययन करते थे। वेद, शास्त्र व पुराण आदि का अध्ययन करने के बाद दोनों के हृदय में यह अहंकार घर कर गया था कि मैं ज्यादा बड़ा विद्वान हूं। एक दिन ऋषि तीर्थ यात्रा से लौटे तो उन्होंने दोनों को इस बात पर झगड़ते देखा कि आश्रम में झाड़ू कौन लगाए। दोनों एक-दूसरे से कह रहे थे कि मैं बड़ा हूं, अतः झाड़ू क्यों लगाऊं, मैं सफाई क्यों करूं 2? ऋषि समझ गए कि दोनों झूठे अहंकार के शिकार बन गए हैं।
ऋषि ने पूछा, "तुम दोनों क्यों झगड़ रहे हो?"
एक ने जवाब दिया, “गुरुवर यह मुझसे दिद्वत्ता में छोटा है, मैं बड़ा हूं। फिर भला मैं झाड़ू लगाने जैसा छोटा काम कैसे कर सकता हूं?''
ऋषि मुस्कुराकर तथा झाड़ उठाकर बोले, “मैं तुम तोनों बड़े विद्वानों से छोटा हूं। आज से झाड़ मैं लगाया करूंगा।''
यह सुनते ही दोनों का अहंकार काफूर हो गया। ऋषि ने समझाया, वत्स, जो अपने को छोटा समझता है, घमंड जिसे छू नहीं गया, वास्तव में बड़ा वही है।' - शिव कुमार गोयल