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प्रेरक प्रसंग: मातृभूमि से करें प्रेम

Edited By Jyoti,Updated: 25 Sep, 2020 06:17 PM

motivational concept in hindi

श्री लाल बहादुर शास्त्री उन दिनों स्वदेशी प्रचार अभियान में जुटे हुए थे। जगह-जगह पहुंच कर लोगों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने तथा खादी पहनने की प्रेरणा देते।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
श्री लाल बहादुर शास्त्री उन दिनों स्वदेशी प्रचार अभियान में जुटे हुए थे। जगह-जगह पहुंच कर लोगों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने तथा खादी पहनने की प्रेरणा देते। सत्याग्रह में शामिल होने के लिए तैयार रहने का आह्वान करते। एक दिन वे काशी के रेलवे स्टेशन पर रेल से उतरे। बाहर आकर वह तांगे में बैठ गए। तांगे वाले ने उन्हें पहचान लिया तथा कांग्रेस कार्यालय पहुंच कर उनका सामान उठाकर आदर से उन्हें उतार दिया। शास्त्री जी उसे जेब से निकाल कर किराए के पैसे देने लगे। 


तांगे वाले ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘नेता जी जिस भारत माता की आजादी के लिए आप लू के थपेड़े खाते घूम रहे हैं, क्या मैं उसका बेटा नहीं हूं। मैं आपसे किराए के पैसे कैसे ले सकता हूं?’’ एक अनपढ़ तांगे वाले की राष्ट्रभक्ति की भावना देखते ही शास्त्री जी की आंखें नम हो उठीं।


देश की आजादी के बाद एक दिन शास्त्री जी ने वाराणसी स्टेशन के बाहर उस तांगे वाले को पहचान लिया। उन्होंने अनेक व्यक्तियों के सामने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘‘भारत के स्वाधीनता आंदोलन में तुम्हारा भी उतना ही योगदान है जितना कि सत्याग्रह कर जेल जाने वालों का।’’
 

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