Edited By Jyoti,Updated: 11 Sep, 2021 06:08 PM
अभय की खोज हमारे जीवन की महत्वपूर्ण खोज है। हम अभय बनें, डरना छोड़ें, जिस व्यक्ति ने अभय का पाठ नहीं पढ़ा, उसका विचार सही नहीं होगा क्योंकि वह भय से प्रभावित होगा
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
अभय की खोज हमारे जीवन की महत्वपूर्ण खोज है। हम अभय बनें, डरना छोड़ें, जिस व्यक्ति ने अभय का पाठ नहीं पढ़ा, उसका विचार सही नहीं होगा क्योंकि वह भय से प्रभावित होगा।
दूसरी बात है समता में से स्फूर्त होने वाला जो विचार ही संतुलित होता है। जहां हीनता और अहंकार की ग्रंथि आ जाती है वहां विचार विकृत बन जाता है।
आदमी का जीवन प्राय: दो प्रकार के संवेदनों में ही बीतता है। प्रियता का संवेदन और अप्रियता का संवेदन। ऐसा विचार जिसके साथ या जिसकी पृष्ठभूमि में प्रियता और अप्रियता दोनों न हों, भाग्य से ही शायद वर्षों में आता होगा।
हम सोचें कि कोई बात एक प्रिय व्यक्ति कहता है तो बहुत अच्छी लगती है और सारा विचार बदल जाता है जबकि वही बात उन्हीं शब्दों में कोई अप्रिय व्यक्ति कहता है, तब मन में घृणा और तिरस्कार का भाव जाग जाता है। ऐसा क्यों?
हम विचारों की बात कर रहे हैं। बहुत ध्यान से देखें तो जिस विचार को हम स्वस्थ मानते हैं वह विचार भी बहुत अस्वस्थ हो जाता है जब यह पक्षपात और प्रियता एवं अप्रियता की अनुभूति से जुड़ जाता है।
आदमी बुराइयां करता है, अप्रमाणिक व्यवहार करता है, दूसरों को धोखा देता है, ये सारे मनोभाव कहां उभरते हैं? एक ओर प्रियता खींच रही है कि यह मेरा परिवार, मेरा पुत्र मेरी पत्नी सुखी रहे। मेरा घर बड़ा बने, मेरे पास अपार धन हो, पदार्थ की कमी न रहे। जहां प्रियता होगी वहां अप्रियता निश्चित ही होगी, कहने की जरूरत नहीं।
एक आदमी बाजार जाता है और पूरी छानबीन करके शुद्ध घी अपने घर में ले जाना चाहता है क्योंकि वह परिवार को मिलावटी चीजें खिलाना नहीं चाहता और वही व्यक्ति मिलावटी दवा बेच देता है दूसरों को क्योंकि उसमें अप्रियता है, प्रियता नहीं है इसलिए वहां संकोच भी नहीं होता कि मैं क्या कर रहा हूं।
ध्यान का एक काम होता है प्रियता और अप्रियता के संवेदन से परे हटकर समता के अनुभव को जगा देना।
जब तक आग राख से ढंकी हुई होगी, ज्योत कभी प्रकट नहीं होगी। ज्योति तभी प्रकट होगी जब राख को हटा हटा कर आग को शुद्ध रूप में प्रकट किया जाए।
ध्यान एक प्रक्रिया है जिसमें विचार पर आई राख को हटाया जाता है। जो व्यक्ति इस राख को हटा देता है उसकी ज्योति आंच में पके हुए सोने की भांति निर्मल तथा सारे जीवन को प्रभावित और चमक देने वाली होगी।