Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Dec, 2023 02:09 PM
एक बार संत जुनैद कहीं जा रहे थे। रास्ते में उनकी मुलाकात अपने एक परिचित से हुई। उसने संत जुनैद से कहा कि वह हजामत क्यों नहीं बनाते। वैसे तो
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Motivational Story: एक बार संत जुनैद कहीं जा रहे थे। रास्ते में उनकी मुलाकात अपने एक परिचित से हुई। उसने संत जुनैद से कहा कि वह हजामत क्यों नहीं बनाते। वैसे तो संत लोग हजामत नहीं बनाते लेकिन संत जुनैद अपने परिचित की बात मानकर हजामत बनाने के लिए नाई के पास गए। उस समय वह एक धनी ग्राहक की हजामत बना रहा था।
संत जुनैद ने सोचा कि यह नाई शायद केवल अमीर लोगों की हजामत बनाता होगा, इसलिए उन्होंने बड़ी नम्रता से पूछा, ‘‘क्या आप मेरी हजामत बनाएंगे ?
नाई बोला, ‘‘क्यों नहीं महाराज, आईए बैठिए।’’
यह कहकर नाई ने उस धनी की हजामत बीच में ही छोड़कर उनकी हजामत बनानी शुरू कर दी। हजामत बनाने के बाद जब संत उसे पैसे देने लगे तो नाई ने कहा, ‘यह रख लीजिए और मेरी ओर से भेंट समझिए।’
संत ने पैसे तो वापस रख लिए लेकिन मन ही मन निश्चय किया कि उन्हें जो कुछ भी दान में मिलेगा उसे वह इस नाई को दे देंगे।
एक दिन उनका एक भक्त अशर्फियों से भरी थैली लेकर उनके पास आया। संत समझ गए कि भक्त उनके लिए ही लाया है। इसके बाद उन्होंने अपने भक्त से थैली ले ली और उसे लेकर वह नाई के पास गए और बोले, ‘‘लो मेरी ओर से यह भेंट ले लो।’
यह सुनकर नाई नाराज होकर उन पर बरस पड़ा। बोला, ‘‘महाराज, आप भी बड़े विचित्र हैं। मैंने भगवान की सेवा समझकर जो काम किया था, उसे आप ग्रहण नहीं करना चाहते और मुझे ही भेंट देकर खुद गलत काम कर रहे हैं और मेरे नेक काम को झुठलाना चाहते हैं।’’
नाई की बात सुनकर संत जुनैद आश्चर्यचकित तो हुए और शर्मिंदा भी हुए और चुपचाप वहां से चले गए।