Edited By Prachi Sharma,Updated: 16 Jun, 2024 08:17 AM
एक संत नदी तट पर आश्रम बनाकर रहते और शिष्यों को शिक्षा देते थे। रमाकांत नामक उनका एक शिष्य हमेशा उनके पास ही रहता था। संत भी उसके प्रति बड़ा स्नेह रखते थे।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Motivational Story: एक संत नदी तट पर आश्रम बनाकर रहते और शिष्यों को शिक्षा देते थे। रमाकांत नामक उनका एक शिष्य हमेशा उनके पास ही रहता था। संत भी उसके प्रति बड़ा स्नेह रखते थे।
एक दिन उसने संत से सवाल किया, “गुरु जी, मनुष्य महान किस तरह बन सकता है ?”
संत बोले, “कोई भी मनुष्य महान बन सकता है लेकिन उसके लिए कुछ बातों को अपने दिलो-दिमाग में उतारना होगा।”
इस पर रमाकांत बोला, “किन बातों को ?”
संत ने रमाकांत की बात सुनकर एक पुतला मंगवाया। संत के आदेश पर पुतला लाया गया। संत ने रमाकांत से कहा कि वह उस पुतले की खूब प्रशंसा करे। उसने पुतले की तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए। वह बड़ी देर तक ऐसा करता रहा।
इसके बाद संत बोले, “अब तुम पुतले का अपमान करो।”
संत के कहने पर रमाकांत ने पुतले का अपमान करना शुरू कर दिया। पुतला क्या करता !
वह अब भी शांत रहा।
संत बोले, “तुमने इस पुतले की प्रशंसा व अपमान करने पर क्या देखा ?”
शिष्य बोला, “गुरुजी, मैंने देखा कि पुतले पर प्रशंसा व अपमान का कुछ भी फर्क नहीं पड़ा।”
शिष्य की बात सुनकर संत बोले, “बस महान बनने का यही एक सरल उपाय है जो व्यक्ति मान-अपमान को समान रूप से सह लेता है वही महान कहलाता है। महान बनने का इससे बढ़िया उपाय कोई और नहीं हो सकता।”
संत की इस व्याख्या से रमाकांत सहित उनके सभी शिष्य सहमत हो गए और सबने प्रण किया कि वे अपने जीवन में प्रशंसा व अपमान को समान रूप से लेने का प्रयास करेंगे।