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कड़वे प्रवचन लेकिन सच्चे बोल- मुनि श्री तरुण सागर जी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Oct, 2020 06:08 PM

muni shri tarun sagar

संतों के वचन जब मच्छर के काटने से बुखार आ सकता है तो संत के श्रीमुख से निकली वाणी से जिंदगी में निखार क्यों नहीं आ सकता है। दरअसल संत जिह्वा से

संतों के वचन
जब मच्छर के काटने से बुखार आ सकता है तो संत के श्रीमुख से निकली वाणी से जिंदगी में निखार क्यों नहीं आ सकता है। दरअसल संत जिह्वा से कम जीवन से ज्यादा बोलते हैं। मुनि का मतलब ही होता है जो मौन है पर मुखर है। कड़वे प्रवचन और मीठे प्रवचन में अंतर भी यह है कि जो संत के मुख से निकले और श्रोता के कान पर जाकर खत्म हो जाएं वे मीठे प्रवचन और जो कानों की यात्रा करते हुए दिल तक पहुंचे वे कड़वे प्रवचन।

PunjabKesari Muni Shri Tarun Sagar

हक और फर्ज
जब कोई लड़की बहू बन कर किसी के घर जाती है तो एक घटना घटती है और वह घटना ही परिवार को हरिद्वार या फिर नरक का द्वार बनाती है। अगर वह अपना हक लेकर ससुराल जाती है तो घर कुछ ही दिनों में नरक बन जाता है और यदि वह अपना फर्ज लेकर ससुराल जाती है तो घर कुछ ही दिनों में स्वर्ग बन जाता है।

बेटियो! ससुराल जाना पर हक के लिए नहीं, फर्ज के लिए जाना। अगर आप अपना फर्ज निभाती रहीं तो हक सहज ही मिल जाएगा।

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दो विपरीत ध्रुव
जैनियों का मूलमंत्र है- णमोकार। इस मंत्र में व्यक्ति को नहीं वरन शक्ति की अभिव्यक्ति को नमन किया गया है। इस मंत्र में पांच बार नमन कर अहंकार पर पांच चोट की गई है। णमोकार और अहंकार दो विपरीत ध्रुव हैं। संसार के इस पार अहंकार है तो उस पार णमोकार है। ज्यों-ज्यों णमोकार की अग्नि प्रज्वलित होती जाती है, अहंकार की बर्फ पिघलती जाती है। णमोकार से लगाव रखोगे तो किसी से अलगाव नहीं होगा।  

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