Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Aug, 2021 08:41 AM
संतों की उंगली पकड़ कर रखो। जैसे बंदर का बच्चा अपनी मां से चिपका रहता है वैसे ही तुम गुरुओं से चिपके रहो। तुम्हारा बस
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संतों की उंगली पकड़ कर रखो। जैसे बंदर का बच्चा अपनी मां से चिपका रहता है वैसे ही तुम गुरुओं से चिपके रहो। तुम्हारा बस इसी में कल्याण है। भीड़ भरे मेले में जब तक बच्चे की उंगली मां के हाथ में होती है, वह खुश रहता है।
ज्यों ही मां की उंगली छूटती है तो बालक भीड़ में खो जाता है। जीवन की उंगली जब तक किसी संत ने थाम रखी है तब तक संसार का कोई थपेड़ा तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकता। उंगली छूटी तो फिर रोना ही-रोना है।
जीने के तीन स्तर हैं। पेड़, पशु, मनुष्य। जिसमें जीवन है पर गति नहीं, वह पेड़। जिसमें जीवन भी है गति भी है पर दिशा नहीं, वह पशु है और जिसमें जीवन भी है, गति भी है और दिशा भी है, वह मनुष्य है।
यदि मनुष्य दिशा में चलता है तो देवता है और मनुष्य विदिशा (कुपथ) में चलता है तो ‘मनुष्य रूपेण मृगा:’ की कहावत को चरितार्थ करता है। मेरा मानना है कि मनुष्य अपनी दिशा सुधार ले तो दशा खुद-ब-खुद सुधर जाएगी।
पत्नी से परेशान आदमी रेलवे स्टेशन पहुंचा। ट्रेन में चढ़ने लगा। तभी आवाज आई, इसमें मत चढ़। ये पटरी से उत्तर जाएगी। वह एयरपोर्ट पहुंचा, प्लेन में चढ़ने लगा, आवाज आई, इसमें मत चढ़ यह क्रैश हो जाएगा।
फिर वह बस स्टैंड पहुंचा। बस में चढ़ने लगा तो आवाज आई इसमें मत चढ़, यह खाई में गिर जाएगी।
आदमी, ‘‘आप हैं कौन?’’
आवाज आई, ‘‘मैं भगवान हूं।’’
आदमी, ‘‘प्रभु जब मैं घोड़ी पर चढ़ रहा था तब क्या आपका गला बैठ गया था।’’
समय पर ही सीख मिलती है बिना समय के तो भीख भी नहीं मिलती।