Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Feb, 2022 11:20 AM
![muni shri tarun sagar](https://img.punjabkesari.in/multimedia/914/0/0X0/0/static.punjabkesari.in/2022_2image_11_17_182204990munitarunsagarjimain.jp-ll.jpg)
जवानी कितने दिन
बचपन में बच्चों की भांति खेलो-कूदो और बेफिक्री से जिओ। मगर जब बच्चों के बाप बन जाओ तो बच्चों के सब खेल छोड़ दो और
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जवानी कितने दिन
बचपन में बच्चों की भांति खेलो-कूदो और बेफिक्री से जिओ। मगर जब बच्चों के बाप बन जाओ तो बच्चों के सब खेल छोड़ दो और जब बूढ़े हो जाओ तो जवानी के खेल और हंसी-मजाक जवानों के लिए छोड़ दो।
जवानी की रंग-रलियां बूढ़े आदमी को शोभा नहीं देतीं। इस सत्य को कभी मत भूलो कि नदी फिर अपने निकास की तरफ नहीं लौटती। बचपन ही अपना न रहा तो जवानी कितने दिन टिकने वाली है! आखिर बुढ़ापा और मौत तो आने ही वाली है।
![PunjabKesari Muni Shri Tarun Sagar](https://static.punjabkesari.in/multimedia/11_19_117731251muni-tarun-sagar-ji-3.jpg)
हम भी तो खोटे हैं
मुल्ला नसरूद्दीन घर पहुंचा तो बीवी ने कहा, ‘‘दुनिया में कैसे-कैसे बेईमान लोग हैं, दिल करता है सबको फांसी पर लटका दूं।’’
मुल्ला बोला, ‘‘बात क्या है?’’
बीवी ने कहा, ‘‘सुबह-सुबह दूध वाला आया था, एक खोटा रुपया पकड़ा गया।’’
मुल्ला ने कहा, ‘‘अच्छा, लाओ जरा मैं भी तो देखूं।’’
बीवी बोली, ‘‘वह तो मैंने सब्जी वाले को दे दिया।’’
रुपया ही खोटा नहीं, हमारा मन भी तो खोटा है। हम भी तो खोटे हैं।
![PunjabKesari Muni Shri Tarun Sagar](https://static.punjabkesari.in/multimedia/11_18_585072793muni-tarun-sagar-ji-2.jpg)
...तो और भी अच्छा है
दूसरों की भलाई करना अच्छा है लेकिन अपनी बुराई ढूंढना और भी अच्छा है। सत्य बोलना अच्छा है लेकिन दूसरों के प्राणों की रक्षा के लिए झूठ बोलना और भी अच्छा है। चरित्र निखरे तो अच्छा है लेकिन हर जगह प्यार बिखरे तो और भी अच्छा है। कर्ज चुकाना अच्छा है लेकिन फर्ज निभाना और भी अच्छा है।
बुराई का नियंत्रण अच्छा है लेकिन अच्छाई का आमंत्रण और भी अच्छा है। तीर्थंकरों और अवतारों को मानना अच्छा है लेकिन तीर्थंकरों और अवतारों की मानना और भी अच्छा है।
आप अमीर हैं, आपके घर नौकर-चाकर हैं, तब भी आप अपना काम खुद करें। हर रोज एक कमरे में ही सही झाड़ू खुद लगाएं, अपनी जूठी थाली खुद धोएं। झाड़ू लगाने, थाली धोने में शर्म कैसी?
जूठी थाली धोने में शर्म कैसी ?
मैं पूछता हूं कि सुबह-सुबह जब हम निवृत्ति के लिए जाते हैं तो हमारी बैठक कौन धोता है? जब हम अपनी बैठक स्वयं धोते हैं तो अपने घर में झाड़ू क्यों नहीं लगा सकते? अपनी जूठी थाली क्यों नहीं धो सकते। बूढ़े मां-बाप की सेवा क्यों नहीं कर सकते?
![PunjabKesari Muni Shri Tarun Sagar](https://static.punjabkesari.in/multimedia/11_18_361474694muni-tarun-sagar-ji-1.jpg)