Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Mar, 2022 11:17 AM

भगवान हर हाल में अच्छे हैं
बचपन में मां सबसे अच्छी लगती है, जवानी में पत्नी, बुढ़ापे में पोता सबसे अच्छा लगता है और मौत के समय ? मौत के
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भगवान हर हाल में अच्छे हैं
बचपन में मां सबसे अच्छी लगती है, जवानी में पत्नी, बुढ़ापे में पोता सबसे अच्छा लगता है और मौत के समय ? मौत के समय भगवान सबसे अच्छे लगते हैं परंतु सिर्फ मौत के समय भगवान अच्छे लगें, वह कोई अच्छी बात नहीं है। भगवान तो हर हाल में अच्छे हैं, सच्चे हैं।
पुत्र-वधू की सेवा के पुण्य को भोगना
वह हमारे पिता हैं और हम उनके बच्चे हैं, वह परिपक्व और हम अभी कच्चे हैं। भगवान तो हर हाल में अच्छे हैं, सच्चे हैं।
पुत्र तुम्हारी सेवा करे तो यह कोई आश्चर्य नहीं। वह तो करेगा ही क्योंकि वह आखिर तुम्हारा ही खून है, लेकिन यदि पुत्रवधू सेवा करे तो यह आश्चर्य है। वह तुम्हारा खून तो दूर, तुम्हारे खानदान तक की भी नहीं है, फिर भी सेवा कर रही है तो निश्चित ही यह तुम्हारे किसी जन्म का पुण्य-फल है।
आज के समय में सब तरह के पुण्य भोगना बहुत से लोगों की किस्मत में है, लेकिन पुत्रवधू की सेवा के पुण्य को भोगना विरले ही मां-बाप के भाग्य में है।

अच्छा पड़ोसी आशीर्वाद है
पड़ोसी धर्म को निभाइए। पड़ोसी धर्म क्या है ? यही कि आप भोजन अवश्य करें मगर इस बात का ख्याल रखें कि कहीं आपका पड़ोसी भूखा न रह जाए!
अच्छा पड़ोसी आशीर्वाद है, पड़ोसी के साथ कभी बिगाड़ें मत क्योंकि हम मित्रों के बिना तो जी सकते हैं, लेकिन पड़ोसी के बिना नहीं।
पड़ोसी के सुख-दु:ख में सहभागी बनिए। यदि पड़ोसी के घर में आग लगी है, तो समझना तुम्हारी अपनी सम्पत्ति भी खतरे में है। और हां, अगर तुम आज पड़ोसी के यहां नमकीन भेजते हो तो कल वहां से मिठाई जरूर आएगी।

सभी आत्माएं एक समान
‘‘मुनिश्री, एक तरफ तो आप कहते हैं कि सभी आत्माएं एक समान हैं। फिर प्रवचन के दौरान आप ऊंची चौकी पर और हमें नीचे जमीन पर बिठाते हैं। इसका मतलब तो यही हुआ कि आप अपने को बड़ा और हमें छोटा समझते हैं।’’
‘‘चौकी पर बैठना मुनि तरुणसागर का शौक नहीं है, मजबूरी है। एक व्यवस्था के तहत मुझे इस चौकी पर बैठना पड़ता है। बावजूद इसके एक अपेक्षा से मैं छोटा और आप बड़े हैं। इसका कारण यह है कि मैं चौकी पर बैठा हूं तो मैं ‘चौकीदार’ हुआ और आप जमीन पर बैठे हैं तो आप ‘जमींदार’ हुए।’’