Muni Shri Tarun Sagar: वे दिन नहीं रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Oct, 2022 10:09 AM

muni shri tarun sagar

जवानी जवानी पर ज्यादा मत इतराना क्योंकि जवानी सिर्फ चार दिनों की है। अत: कानों में बहरापन आए, इससे पहले ही जो सुनने जैसा है,

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जवानी
जवानी पर ज्यादा मत इतराना क्योंकि जवानी सिर्फ चार दिनों की है। अत: कानों में बहरापन आए, इससे पहले ही जो सुनने जैसा है, उसे सुन लेना। पैरों में लंगड़ापन आए, इससे पहले ही दौड़-दौड़ कर तीर्थयात्रा कर लेना। आंखों में अंधापन आए, इससे पहले ही अपने स्वरूप को निहार लेना। वाणी में गूंगापन आए, इससे पहले ही कुछ मीठे बोल बोल लेना।  हाथों में लूलापन आए, इससे पहले ही दान-पुण्य कर डालना।  दिमाग में पागलपन आए, इससे पहले ही प्रभु के हो जाना।

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भगवान

बचपन में मां सबसे अच्छी लगती है, जवानी में पत्नी सबसे अच्छी लगती है, बुढ़ापे में पोता सबसे अच्छा लगता है और मौत के समय ? मौत के समय भगवान सबसे अच्छे लगते हैं, पर सिर्फ मौत के समय भगवान अच्छे लगें, यह कोई अच्छी बात नहीं है। भगवान तो हर हाल में अच्छे हैं, सच्चे हैं। वह हमारे पिता हैं और हम उनके बच्चे हैं, वह परिपक्व और हम अभी कच्चे हैं। भगवान तो हर हाल में अच्छे हैं, सच्चे हैं।

ढीठ मेहमान
दुख बड़ा ढीठ मेहमान है। अगर यह तुम्हारे घर के लिए निकल पड़ा है तो पहुंचेगा जरूर। अब अगर तुम इस मेहमान को घर आता हुआ देख कर सामने का दरवाजा बंद कर लो तो यह पीछे के दरवाजे से आ जाएगा। पीछे का दरवाजा भी बंद कर लो तो यह खिड़की में से आ जाएगा। खिड़की भी बंद कर लो तो छप्पर फाड़कर नहीं तो फर्श उखाड़कर आ जाएगा। ढीठ मेहमान है न। अत: जीवन में सुख की तरह दुख का भी स्वागत करो। दुख की मेजबानी के लिए भी तैयार रहो, यह सोच कर कि वे दिन नहीं रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे।

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