Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Jul, 2023 09:43 AM
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जीवन के तनाव का कारण धर्म और धन दोनों औषध हैं, लेकिन धर्म टॉनिक है। धर्म केवल पीने की दवा है। धन मरहम है, वह बाहर से लगाने की दवा है।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
जीवन के तनाव का कारण
धर्म और धन दोनों औषध हैं, लेकिन धर्म टॉनिक है। धर्म केवल पीने की दवा है। धन मरहम है, वह बाहर से लगाने की दवा है। दोनों का सही प्रयोग जीवन को स्वस्थ बनाता है, परंतु दुर्भाग्य से आज सब कुछ उल्टा हो रहा है। धर्म को बाहर लगाया जा रहा है, उसका प्रदर्शन किया जा रहा है और धन पीया जा रहा है, उसे जिया जा रहा है। यह विसंगति ही जीवन के तनाव का कारण है।
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दो चोर
चोर-चोर है यह सत्य है, मगर अधूरा। पूरा सत्य तो यह है कि चोर पूरा चोर (पूरे समय) कभी नहीं होता। बीच-बीच में वह भी संत हो सकता है और संत-संत है यह भी सत्य है, मगर अधूरा। पूरा सत्य तो यह है कि संत भी पूरे समय संत कभी नहीं होता, चढ़ते-गिरते वह भी चोर हो सकता है। मेरे अनुसार संत-मुनि भी चोर है। फर्क केवल इतना होता है कि चोर तुम्हारा वित्त चुराता है और संत तुम्हारा चित्त चुराता है। संत चित्तचोर है। संतत्व का अर्थ इतना ही है कि बोलो वही जिसके नीचे हस्ताक्षर कर सको और सोचो वही जो बेहिचक बोल सको।
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धर्मसभाएं बनाम गैराज
यदि आप गाड़ी चलाते हैं तो उसे सर्विस के लिए गैराज में भेजते हैं। क्यों ? ताकि उसकी सफाई हो सके। संत-मुनियों की धर्मसभाएं भी गैराज जैसी हैं, जहां तुम्हारे दिल-दिमाग रूपी इंजन की धुलाई की जाती है। जिंदगी भी एक गाड़ी है-संकल्प की गाड़ी। अगर इस गाड़ी में हौसले के पहिए, धर्म का इंजन, कर्म का ईंधन, संयम का स्टीयरिंग-व्हील, मर्यादा का एक्सीलेटर, अनुशासन का ब्रेक और टूल बाक्स में ज्ञान और चरित्र रूपी औजार हों तो यह गाड़ी निश्चित ही मोक्ष मंजिल तक पहुंचती है।
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