Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Aug, 2024 11:11 AM
आपने कभी ख्याल किया : आंखें दो हैं, कान दो हैं, हाथ दो हैं, पांव भी दो हैं लेकिन मुख
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काम का बोलें
कम बोलें, काम का बोलें।
आपने कभी ख्याल किया : आंखें दो हैं, कान दो हैं, हाथ दो हैं, पांव भी दो हैं लेकिन मुख एक है। क्यों?
इसलिए कि देखें ज्यादा, बोलें कम, सुनें ज्यादा, बोलें कम, दें ज्यादा, कहें कम, चलें ज्यादा, कहें कम।
शब्द सम्पदा हैं। इनका उपयोग सोच-समझकर करिए। शब्दों का बर्ताव फिजूल में बर्बाद न करें।
जो ज्यादा बोलते हैं, उन्हें कोई नहीं सुनता। जो कम बोलते हैं, उन्हें हर कोई सुनता है।
समय पर ही सीख
पत्नी से परेशान आदमी रेलवे स्टेशन पहुंचा। ट्रेन में चढ़ने लगा। तभी आवाज आई, इसमें मत चढ़। यह पटरी से उतर जाएगी। वह एयरपोर्ट पहुंचा, प्लेन में चढ़ने लगा, आवाज आई, इसमें मत चढ़। यह क्रैश हो जाएगा। बस स्टैंड पहुंचा। बस में चढ़ने लगा, आवाज आई, इसमें मत चढ़। यह खाई में गिर जाएगी।
आदमी, ‘‘आप हैं कौन?’’
आवाज आई, ‘‘मैं भगवान हूं।’’
आदमी, ‘‘प्रभु, जब मैं घोड़ी पर चढ़ रहा था तब आप कहां थे ?’’
समय पर ही सीख मिलती है बिना समय के तो भीख भी नहीं मिलती।
दिशा व दशा
जीने के तीन स्तर हैं। पेड़, पशु, मनुष्य। जिसमें जीवन है पर गति नहीं वह पेड़, जिसमें जीवन भी है, गति भी है पर दिशा नहीं, वह पशु है और जिसमें जीवन भी है, गति भी है और दिशा भी है, वह मनुष्य है।
यदि मनुष्य दिशा में चलता है तो देवता है और मनुष्य विदिशा (कुपथ) में चलता है तो ‘मनुष्य रुपेण मृगा:’ की कहावत को चरितार्थ करता है। मेरा मानना है कि मनुष्य अपनी दिशा सुधार ले तो दशा खुद-ब-खुद सुधर जाएगी।
जीवन की उंगली
संतों की उंगली पकड़ कर रखो। जैसे बंदर का बालक अपनी मां से चिपका रहता है, वैसे ही तुम गुरुओं से चिपके रहो। बस तुम्हारा इसी में कल्याण है। भीड़ भरे मेले में जब तक बच्चे की उंगली मां के हाथ में होती है, वह खुश रहता है। ज्यों ही मां की उंगली छूटती है, तो बालक भीड़ में खो जाता है।
जीवन में उंगली किसी संत ने थाम रखी है तब तक संसार का कोई थपेड़ा तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकता। उंगली छूटी तो फिर रोना ही रोना है।