जल्द ही मुंशी प्रेमचंद का घर बनेगा राष्ट्रीय स्मारक स्थल

Edited By Prachi Sharma,Updated: 22 Aug, 2024 10:07 AM

munshi premchand

आजमगढ़-वाराणसी मार्ग पर महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद का गांव लमही वाराणसी से महज 7-8 कि.मी. पहले सड़क पर स्थित है। यह गांव चंदौली लोकसभा

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

आजमगढ़-वाराणसी मार्ग पर महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद का गांव लमही वाराणसी से महज 7-8 कि.मी. पहले सड़क पर स्थित है। यह गांव चंदौली लोकसभा क्षेत्र में आता है। मुंशी प्रेमचंद के वंशज अब प्रयागराज के बाशिंदे हो चुके हैं। 

1959 में मुंशी प्रेमचंद की 20वीं पुण्यतिथि पर वे लोग गांव का पुश्तैनी मकान ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ को दान कर गए लेकिन उनकी शिनाख्त लमही गांव से ही है। गांव में उनके घर ने एक स्मारक का रूप ले लिया है जहां के मकान, कुएं और चौबारे उनकी ढेर सारी स्मृतियों के गवाह हैं। इस गांव में आकर दिखा कि ‘कथा सम्राट’ के गांव में जुड़ी उनकी स्मृतियों को सहेजने में सरकार का तनिक भी ध्यान नहीं है, जबकि यह स्मारक यू.पी. सरकार के सांस्कृतिक विभाग का हिस्सा है। 

PunjabKesari Munshi Premchand

स्मारक के एक कक्ष में प्रेमचंद के इस्तेमाल की तमाम वस्तुएं जीर्ण-शीर्ण हाल में हैं, जिसमें सूत कातने का चरखा, रेडियो, हुक्का, टार्च आदि प्रमुख हैं। इसी कक्ष में एक छोटा लैटर बॉक्स है, जिसके ऊपर एक तख्ती पर लिखा हुआ है ‘डाक मुंशी का बेटा बना सम्राट !’ 

लेकिन यहां ‘कथा सम्राट’ के कद जैसी व्यवस्था नहीं है। उनकी लगभग सभी कहानियों में गांव और उसका परिवेश, वहां के लोग और उनके जानवर मुख्य किरदार में होते थे। 

वह गांव के कुएं पर बैठ कर लोगों से मिलते थे, बातें करते थे और इसी में वह अपनी कथा ढूंढ लेते थे। उनकी लगभग सभी कहानियों में गांव और वहां के लोग ही प्रमुख किरदार हैं। आकाश से कहीं ऊंचे इस कथाकार का गांव में स्थित स्मारक बहुत छोटा व उपेक्षित है। गांव में  मुंशी प्रेमचंद का दो-तीन कमरे का छोटा घर है। इसी घर के अलग-अलग कमरों में उनके दिनचर्या की स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। 

PunjabKesari Munshi Premchand

घर अग्र भाग में मुंशी प्रेमचंद की छोटी प्रतिमा स्थापित है, जिस पर यदा-कदा कोई माला चढ़ा जाता है।  स्मारक के संरक्षक सुरेश चंद्र द्विवेदी यहां हर वक्त मौजूद मिलेंगे। वह यहां नि:शुल्क सेवा देते हैं। यहां गाइड की भूमिका के साथ वह इस स्मारक के रख-रखाव की जिम्मेदारी संभालते हैं। यहां आने वाले लोग मुंशी प्रेमचंद की एक-दो किताबें खरीदते हैं, यही सुरेश चंद्र द्विवेदी के आय का जरिया है। 

मुंशी प्रेमचंद के चाहने वाले साहित्यकारों की संख्या लाखों में है, कह नहीं सकते कि इन लोगों ने स्मारक के सुंदरीकरण की मांग कभी उठाई है या नहीं !
कहने को स्मारक की बगल में ही ‘प्रेमचंद शोध संस्थान’ का विशालकाय भवन बनकर तैयार है। इसकी स्थापना का उद्देश्य प्रेमचंद साहित्य पर शोध, नाटक आदि था। 

PunjabKesari Munshi Premchand

अफसोस 2016 से स्थापित इस भवन पर आज की तारीख तक सिर्फ एक गार्ड भर तैनात है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के अधीन इस शोध संस्थान का काम आगे इसलिए नहीं बढ़ पा रहा है क्योंकि संबंधित विभाग धनाभाव का रोना रोता रहता है।

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!