नागेश्वर ज्योतिर्लिंगः कथा पढ़ने व सुनने से मिलेगी पापों से मुक्ति

Edited By Lata,Updated: 04 Aug, 2019 10:02 AM

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सावन का पवित्र महीना चल रहा है और ऐसे में भोलेनाथ के हर स्वरूप की पूजा करने से दोगुना अधिक लाभ मिलता है।

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सावन का पवित्र महीना चल रहा है और ऐसे में भोलेनाथ के हर स्वरूप की पूजा करने से दोगुना अधिक लाभ मिलता है। शास्त्रों के अनुसार पूरे जो इसांन पूरे सावन माह के व्रत का पालन करता है। उसे भगवान शिव मनचाहा वरदान देते हैं। इसके साथ ही ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति 12 ज्योतिर्लिंगों में से किसी एक के दर्शन कर ले तो वारे न्यारे हो जाते हैं। आज हम बात करेंगे दसवें  ज्योतिर्लिंग के बारे में, जिसे नागेश्वर के नाम से जाना जाता है। 
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यह ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रांत में द्वारकापुरी से लगभग 17 मील की दूरी पर स्थित है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की शास्त्रों में बड़ी महिमा बताई गई है। कहा गया है कि जो श्रद्धापूर्वक इसकी उत्पत्ति और माहात्म्य की कथा सुनेगा वह सारे पापों से छुटकारा पाकर समस्त सुखों का भोग करता हुआ अंत में भगवान शिव के परम पवित्र दिव्य धाम को प्राप्त होगा। तो आइए जानते हैं इसके पीछे जुड़ी पौराणिक कथा को। 
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पौराणिक कथा के अनुसार सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह भगवान शिव का अनन्य भक्त था। वह निरंतर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता था। अपने सारे कार्य वह भगवान शिव को अर्पित करके करता था। मन, वचन, कर्म से वह पूर्णतः शिवार्चन में ही तल्लीन रहता था। उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था। उसे भगवान शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती थी। वह निरंतर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुंचे। 
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एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उस दुष्ट राक्षस दारुक ने यह उपयुक्त अवसर देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका में सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया। सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान शिव की पूजा-आराधना करने लगा। अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा। दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यंत क्रुद्ध होकर उस कारागर में आ पहुंचा। सुप्रिय उस समय भगवान शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आंखें बंद किए बैठा था। उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यंत भीषण स्वर में उसे डांटते हुए कहा- 'अरे दुष्ट वैश्य! तू आंखें बंद कर इस समय यहां कौन से उपद्रव और षड्यंत्र करने की बातें सोच रहा है?' 
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उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई। अब तो वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल हो उठा। उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया। सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ। वह एकाग्र मन से अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे आराध्य इस विपत्ति से मुझे अवश्य ही छुटकारा दिलाएंगे। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान शंकर तत्क्षण उस कारागार में एक ऊंचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए। उन्होंने इस प्रकार सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना पाशुपत-अस्त्र भी प्रदान किया। इस अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया। भगवान शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा।

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