Edited By Jyoti,Updated: 07 Jul, 2022 10:58 AM
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में नौ देवियों में से एक नैना देवी नामक मंदिर, जिसे माता के शक्तिपीठ में से एक माना जाता है। बता दें पूरे भारत में माता सती के कुल 51 शक्तिपीठ हैं। तो वहीं कुछ मान्यताओं के अनुसार कुल 102 शक्तिपीठ माने जाते हैं। बात करें...
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हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में नौ देवियों में से एक नैना देवी नामक मंदिर, जिसे माता के शक्तिपीठ में से एक माना जाता है। बता दें पूरे भारत में माता सती के कुल 51 शक्तिपीठ हैं। तो वहीं कुछ मान्यताओं के अनुसार कुल 102 शक्तिपीठ माने जाते हैं। बात करें नैना देवी मंदिर यानि इस भव्य मंदिर की तो इसे हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक माना गया है। जिसके मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान गणेश जी और हनुमान जी विराजित हैं। तो वहीं मंदिर परिसर में तीन प्रतिमाएं स्थापित हैं, जो इस प्रकार है- दाईं ओर काली माता, मध्य में नैना देवी और बाईं ओर गणेश भगवान जी। मंदिर के पीछे की तरफ एक तालाब बना निर्मित है, जिसका धार्मिक दृष्टि से अधिक महत्व है। बता दें धार्मिक ग्रंथों में किए वर्णन के अनुसार नौ देवियों में से नैना देवी छठवें स्थान पर आती हैं।
जिसमें से सबसे प्रथम स्थान पर मां वैष्णो देवी, दूसरे स्थान पर मां चामुण्डा देवी, तीसरे पर मां बज्रेश्वरी देवी, चौथा स्थान मां ज्वाला देवी का, पांचवें पर विराजमान है मां चिंतपूर्णी, जिसके बाद छठवें स्थान पर मां नैना देवी हैं, सातवां स्थान मां मनसा देवी को समर्पित है, आठवां मां कालिका देवी को तथा नवम यानि आखिरी स्थान मां शाकम्भरी को प्रदान है। चूंकि हम बात करे रहे हैं नैना देवी मंदिर की इसलिए आज इनसे जुड़ी कथा के बारे में जानेंगे। तो चलिए बिना देर किए जानते हैं नैना देवी से जुड़ी पौराणिक कथा-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती जो कि दक्ष प्रजापति की पुत्री थी उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव से किया था। मगर उन्हें शिव जी बिल्कुल भी पसंद नहीं थे। लेकिन देवताओं की मांग के कारण उन्होंने अपनी प्रिय पुत्री का विवाह विधि पूर्वक भोलेनाथ से कर दिया। पुत्री के द्वारा शिव जी से विवाह के चलते राजा दक्ष प्रजपति का मोह उनसे कम होता गया है। अतः उन्होंने शादी के बाद कभी अपनी पुत्री को मिलने की इच्छा तक नहीं जताई। ऐसे में एक बार उन्होंने यानि राजा दक्ष प्रजापति ने अपने यहां यज्ञ करवाया जिसमें उन्होंने सभी देवताओं को तो बुलाया लेकिन अपनी बेटी और उनके पति भगवान शिव को नहीं बुलाया और न ही शिव जी का यज्ञ स्थल में सिंहासन लगवाया।
जब ये बात देवी सती को पता चली तो वह क्रोधित हो गई और समस्त देवताओं आदि के समक्ष अपने अर्धांग का ये अपमान वह सह न सकी और उसी यज्ञ में वह कूद गई। जब इस बात का शिव शंकर को पता चला तब उनके क्रोध की कोई सीमा न रही। उन्होंने क्रोध के आवेश में आकर अपने ही ससुर का सिर धड़ से अलग कर दिया और अपनी पत्नी सती के जलते शरीर को हवन कुंड से निकालकर गोद में लिया और उठाकर जग में विचरने लगे।
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भगवान शंकर को इस हालात में देख जब विष्णु भगवान को ब्रह्मांड की चिंता हुई कि अगर शिव शंकर इसी तरह क्रोध और शोक की अवस्था में रहे तो इस ब्रह्मांड का सर्वनाश हो जाएगा। तब समस्त देवताओं के कहने पर उन्होंने सती माता को के शरीर को अपने सुर्दशन से काटकर उसे विभिन्न हिस्सों में बांट दिया।
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि माता सती के शरीर के ये अंग अलग-अलग जगहों पर गिरे, जो आगे चलकर शक्तिपीठ कहलाएं। जिनमें से एक शक्तिपीठ नैना देवी को माना जाता है। धार्मिक कथाओं के अनुसार यहां सती माता के नैत्र गिरे थे, जिस कारण इस स्थल को नैना देवी के नाम से जाना जाता है। बता दें नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है, जो शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियों पर स्थित है।