शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Nanda Mahotsav 2024: भारत के तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में गोकुलाष्टमी मनाने का विशिष्ट महत्व है क्योंकि इन स्थानों पर भगवान ने विशेष लीलाएं की हैं। उत्तर प्रदेश की पावन धरती पर श्री कृष्ण जी ने जन्म लिया, मन मोह लेने वाली अठखेलियां करते हुए बचपन बीता माखन चुराना, दूध, दही से भरी मटकियां फोड़ना, राधा जी से प्रेम आदि। गुजरात की पावन धरती ठखेलियों की और महाराष्ट्र में तो श्रीकृष्ण जी के बालहठ और शरारतों से जुड़े खेल होते हैं जो दुनियाभर में मशहूर हैं। दही हांडी प्रतियोगिता के लिए तो प्रतियोगी पूरे साल मेहनत करते हैं।
संसार भर में जन्माष्टमी पर्व को धूम-धाम से मनाया जाता है। इस त्यौहार को अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे कृष्णाष्टमी, सातम आठम, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयंति और कृष्ण जन्माष्टमी आदि। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भाद्र महीने की अमावस्या की अष्टमी यानी आठवें दिन कृष्ण अष्टमी मनाने का विधान है।
ब्रजमंडल क्षेत्र के गोकुल और नंदगांव में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नंदोत्सव या नंद उत्सव का विशेष आयोजन होता है। शास्त्रों के अनुसार कंस की नगरी मथुरा में अर्धरात्रि में श्रीकृष्ण के जन्म के बाद सभी सैनिकों को नींद आ जाती है और वासुदेव की बेड़ियां खुल जाती हैं। तब वासुदेव कृष्णलला को गोकुल में नंदराय के यहां छोड़ आते हैं। नंदराय जी के घर लाला का जन्म हुआ है धीरे-धीरे यह बात गोकुल में फैल जाती है। अतः श्रीकृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में 'नंदोत्सव' पर्व मनाया जाता है। भाद्रपद मास की नवमी पर समस्त ब्रजमंडल में नंदोत्सव की धूम रहती है।
श्री कृष्ण का जन्म मात्र एक पूजा-अर्चना का विषय नहीं है बल्कि एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस उत्सव में भगवान के श्री विग्रह पर कपूर, हल्दी, दही, घी, तेल, केसर तथा जल आदि चढ़ाने के बाद लोग बडे़ हर्षोल्लास के साथ इन वस्तुओं का परस्पर सेवन करते हैं। पूरे उत्तर भारत में इस त्यौहार के उत्सव के दौरान भजन गाए जाते हैं व नृत्य किया जाता है।
दधिकांदो पर्व: नंदोत्सव पर्व दधिकांदों के रूप में भी मनाया जाता है। दधिकांदो का अर्थ है दधि और कंध का मिश्रण। अर्थात केसर या हल्दी मिश्रित दही से कृष्ण जन्म पर होली मनाई जाती है। इस दिन पूरे उत्तर भारत में दिन के समय में केसर या हल्दी मिश्रित दही से होली खेली जाती है तथा शाम के समय मंदिरों में ग्रहस्थ पुजारी बाबा नंद और मैया यशोदा के भेस धारण कर कृष्ण-लला को पालने को झुलाते हैं। प्रसाद रूप में मिठाई, फल, मेवा व मिश्री लुटायी जाती है। श्रद्धालु इस प्रसाद को पाकर अपने आपको धन्य मानते हैं।