Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Feb, 2023 10:25 AM
नारद मुनि जहां भी जाते थे, बस ‘नारायण-नारायण’ कहते रहते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि किसान परमानंद की अवस्था
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Narad Muni story: नारद मुनि जहां भी जाते थे, बस ‘नारायण-नारायण’ कहते रहते थे। एक दिन उन्होंने देखा कि किसान परमानंद की अवस्था में जमीन जोत रहा था। उन्हें यह जानने की उत्सुकता हुई कि उसके आनंद का राज क्या है। जब वह उस किसान से बात करने पहुंचे तो वह अपनी जमीन को जोतने में इतना डूबा हुआ था कि उसने नारद जी की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। दोपहर के समय उसने काम से थोड़ा विराम लिया और खाना खाने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठा। उसने बर्तन को खोला, जिसमें थोड़ा सा भोजन था। उसने सिर्फ ‘नारायण, नारायण, नारायण’ कहा और खाने लगा।
1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें
नारद जी ने पूछा, ‘‘तुम्हारे इस आनंद की वजह क्या है ?’’
किसान बोला, ‘‘हर दिन नारायण अपने असली रूप में मेरे सामने आते हैं। मेरे आनंद का यही कारण है।’’
नारद ने पूछा, ‘‘तुम कौन सी साधना करते हो ?’’
किसान बोला, ‘‘मुझे कुछ नहीं आता। मैं एक अज्ञानी, अनपढ़ आदमी हूं। बस सुबह उठने के बाद मैं तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। अपना काम शुरू करते समय मैं तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। काम खत्म करने के बाद मैं फिर तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं। जब मैं खाता हूं तो तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं और जब सोने जाता हूं तो भी तीन बार ‘नारायण’ बोलता हूं।’’
नारद जी ने गिना कि वह खुद 24 घंटे में कितनी बार ‘नारायण’ बोलते हैं। वह लाखों बार ऐसा करते थे मगर फिर भी उन्हें ‘नारायण’ से मिलने के लिए बैकुंठ तक जाना पड़ता था, जो बहुत ही दूर था। नारद जी बैकुंठ पहुंच गए और उन्होंने भगवान विष्णु से पूछा, ‘‘मैं हर समय आपका नाम जपता रहता हूं मगर आप मेरे सामने प्रकट नहीं होते। मुझे आकर आपके दर्शन करने पड़ते हैं, मगर उस किसान के सामने आप रोज प्रकट होते हैं और वह परमानंद में जीवन बिता रहा है।’’
विष्णु जी ने नारद से कहा, ‘‘पहले आपको काम करना होगा। तेल से भरे एक बर्तन को भूलोक ले जाइए। मगर इसमें से एक बूंद भी तेल छलकना नहीं चाहिए।’’
नारद जी लौटे तो विष्णु जी ने पूछा, ‘‘जब आप तेल से भरा यह बर्तन लेकर जा रहे थे तो आपने कितनी बार नारायण बोला ?’’
नारद बोले, ‘‘उस समय मैं नारायण कैसे बोल सकता था ? आपने कहा था कि एक बूंद तेल भी नहीं गिरना चाहिए, इसलिए मुझे पूरा ध्यान उस पर देना पड़ा, मगर वापस आते समय मैंने बहुत बार नारायण कहा।’’
विष्णु बोले, ‘‘यही आपके प्रश्न का उत्तर है। उस किसान का जीवन तेल से भरा बर्तन ढोने जैसा है जो किसी भी पल छलक सकता है। उसे अपनी जीविका कमानी पड़ती है, उसे बहुत सारी चीजें करनी पड़ती हैं, मगर उसके बावजूद वह नारायण बोलता है। जब आप इस बर्तन में तेल लेकर जा रहे थे तो आपने एक बार भी नारायण नहीं कहा, यानी यह आसान तब होता है जब आपके पास करने के लिए कुछ नहीं होता।’’
इसलिए ईश्वर कहते हैं कि जो अपने कर्म करते हुए भी मुझे याद करता है, उसके द्वार पर उसके दुख हरने मैं स्वयं जाता हूं और जो फुर्सत मिलने पर मुझे याद करता है, उसे दुख के समय मेरे द्वार पर आना होगा।