Narmada Jayanti: जानें, कैसे हुआ मां नर्मदा का जन्म, पढ़ें रोचक कथा और महत्व

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Feb, 2024 07:30 AM

narmada jayanti

हिंदू धर्म में गंगा मईया की तरह ही नर्मदा नदी को भी बहुत ही पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि नर्मदा जी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में हमेशा सुख और शांति बनी रहती है।

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Narmada Jayanti 2024: हिंदू धर्म में गंगा मईया की तरह ही नर्मदा नदी को भी बहुत ही पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि नर्मदा जी की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में हमेशा सुख और शांति बनी रहती है। भारत में 7 धार्मिक नदियां हैं, उनमें से ही एक हैं नर्मदा। शास्त्रों में इनका अलौकिक शब्दों द्वारा उल्लेख देखने को मिलता है। नर्मदा नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप धूल जाते हैं। नर्मदा नदी के पास भगवान शिव का बहुत प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग है। जिसे ओमकारेश्वर कहा जाता है। दूर-दूर से लोग इसके दर्शन करने आते हैं।

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Birth story of Maa Narmada मां नर्मदा की जन्म कथा: पौराणिक कथाओं के अनुसार एक दिन भोलेनाथ अपनी तपस्या में लीन थे। तपस्या करते समय उनके शरीर से पसीना निकला और उसी से ही नर्मदा का जन्म हुआ। नर्मदा का अर्थ है सुख प्रदान करने वाली। इसलिए भगवान शिव ने उस कन्या को आशीर्वाद दिया और कहा की जो व्यक्ति तुम्हारा दर्शन करेगा, उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे। वह मैखल पर्वत पर उत्पन्न हुई थीं इसलिए वह मैखल राज की पुत्री भी कहलाती हैं।

Story of King Hiranya Teja राजा हिरण्य तेजा की कहानी: स्कंदपुराण के अनुसार राजा हिरण्य तेजा अपने पितरो का तर्पण करने के लिए धरती के सभी तीर्थों पर गए इसके बावजूद भी उनके पितरों को मोक्ष नहीं मिल पा रहा था। उन्होंने अपने पितरों से इसका जवाब मांगा कि आपको कहां संतुष्टि मिल पायेगी?
 
उन्होंने कहा कि हमें मां नर्मदा के पवित्र जल में तर्पण से मोक्ष मिलेगा।

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पितरों की बात का मान रखते हुए राजा 14 साल तक भोलेनाथ की तपस्या करते रहें। महादेव राजा की तपस्या को देखकर प्रसन्न हुए। तब राजा ने वरदान के रूप में मां नर्मदा को धरती पर आने की याचना की। देवों वे देव ने तथास्तु कहकर अपनी बेटी को धरती पर भेज दिया। तब राजा ने नर्मदा नदी के किनारे तर्पण कर पितरों को मोक्ष प्रदान किया।

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Importance of Narmada Jayanti नर्मदा जयंती का महत्व: भगवान शिव के साथ नर्मदा माता का भी वर्णन सुनने को मिलता है। अमरकंटक से प्रवाहित होने के कारण इस राज्य में नर्मदा जयंती का अधिक महत्व है। माता नर्मदा के तट पर बहुत से ऋषि, मुनियों ने कई वर्षो तक कठोर तप किया था। पुराणों के अनुसार नर्मदा नदी की परिक्रमा करने से व्यक्ति रिद्धि-सिद्धि का देवता बन जाता है। इस नदी की परिक्रमा कोई भी कर सकता है चाहे वह  किन्नर, नाग, गंधर्व आदि या मानव स्वयं हो। नर्मदा के तट पर लोग अपने पितरों का पिंड दान करते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के हर एक अवतार ने इस तट पर आकर मां नर्मदा की स्तुति की थी। यह भी माना जाता है कि सर्प विष के प्रभाव को भी माता नष्ट कर अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।

 

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