Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Aug, 2023 09:22 AM
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हॉकी के जादूगर के नाम से प्रसिद्ध अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल और अंतरराष्ट्रीय मैचों में 400 से अधिक गोल कर भारत को 1928 का
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National Sports Day: हॉकी के जादूगर के नाम से प्रसिद्ध अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल और अंतरराष्ट्रीय मैचों में 400 से अधिक गोल कर भारत को 1928 का ए सटर्डम ओलंपिक, 1932 का लॉस एंजिल्स ओलंपिक एवं 1936 के बर्लिन ओलंपिक में कप्तान के रूप में खेलते हुए भारतीय हॉकी टीम को तीन बार ओलंपिक स्वर्ण पदक जिताने वाले मेजर ध्यानचंद जी की गिनती भारत एवं विश्व के सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ियों में होती है।
ध्यानचंद जी को इनके असाधारण गोल-स्कोरिंग कारनामों के लिए 1956 में पद्म भूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया और इनके जन्मदिन को ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन हर साल खेलों में उत्कृष्टता के लिए सर्वोच्च खेल सम्मान, खेल रत्न, अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कारों की घोषणा की जाती है। भारतीय ओलंपिक संघ ने इन्हें ‘शताब्दी का खिलाड़ी’ घोषित किया था।
इनके नाम पर ही खेलों में देश के लिए बढ़िया प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को ‘मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार’ दिया जाता है। पहले इसी पुरस्कार को देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर ‘राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार’ कहा जाता था। मेजर ध्यानचंद जी का जन्म 29 अगस्त, 1905 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के एक परिवार में हुआ था। उनके पिता समेश्वर सिंह कुशवाहा ब्रिटिश इंडिया आर्मी में सूबेदार थे और साथ ही हॉकी भी खेला करते थे जबकि धार्मिक विचारों वाली माता का नाम शारदा सिंह कुशवाहा था। इनके दो भाई थे, मूल सिंह एवं रूप सिंह। रूप सिंह भी ध्यानचंद की तरह हॉकी के बहुत अच्छे खिलाड़ी थे।
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शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1922 में ध्यानचंद 16 वर्ष की आयु में दिल्ली में सेना की प्रथम ब्राह्मण रेजिमेंट में एक साधारण सिपाही के रूप में भर्ती हो गए। इन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रेजिमेंट के एक सूबेदार मेजर तिवारी को जाता है जो स्वयं भी एक अच्छे खिलाड़ी थे। उनकी देख-रेख में ध्यानचंद हॉकी खेलने लगे। देखते ही देखते अपनी मेहनत से दुनिया के एक महान खिलाड़ी बन गए।
ध्यानचंद मन लगाकर रात को भी काफी अभ्यास किया करते थे। 1936 में 31 वर्ष की आयु में इनका विवाह जानकी देवी के साथ हुआ था। इन्होंने 13 मई, 1926 को न्यूजीलैंड में पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला था और उसके बाद इन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। 1936 के बर्लिन ओलंपिक में 15 अगस्त को भारत और जर्मनी के बीच फाइनल मुकाबला हुआ जिसमें भारत 8-1 से जीता। ध्यानचंद का जादुई खेल देखकर जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने उन्हें बड़ा ऑफर देकर जर्मनी की ओर से खेलने का प्रस्ताव दिया जिसे इन्होंने विनम्रता से यह कहकर ठुकरा दिया कि ‘‘मैंने भारत का नमक खाया है, मैं भारतीय हूं और भारत के लिए ही खेलूंगा।’’
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किसी भी मैच में जब उनके पास बॉल आती तो फिर उसे गोल करने से कोई नहीं रोक सकता था। नीदरलैंड में एक मैच के दौरान उनकी हॉकी में चुम्बक होने के शक में उनकी स्टिक तोड़कर देखी गई थी। जापान में एक मैच में उनकी स्टिक में गोंद लगे होने की बात भी कही गई लेकिन उनके विरुद्ध हुई सारी जांच निराधार साबित हुईं क्योंकि जादू हॉकी में नहीं, ध्यानचंद के हाथों में था।
हॉकी के प्रतिष्ठित सेंटर फॉरवर्ड ध्यानचंद ने 42 वर्ष की आयु तक खेलने के बाद 1948 में हॉकी से संन्यास ग्रहण कर लिया और 3 दिसंबर, 1979 को 74 वर्ष की आयु में इनका देहांत हो गया।