Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Oct, 2024 11:42 AM
Shardiya Navratri Day 2: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और आज पूजा का दूसरा दिन है। नवरात्रि के दूसरे दिन विशेष रूप से दुर्गा मां के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की पूजा की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में विशेष रूप से देवी मां के सभी नौ रूपों की पूजा...
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Shardiya Navratri Day 2: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और आज पूजा का दूसरा दिन है। नवरात्रि के दूसरे दिन विशेष रूप से दुर्गा मां के ब्रह्मचारिणी स्वरुप की पूजा की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों में विशेष रूप से देवी मां के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है। हर दिन उनके एक अलग रूप की उपासना की जाती है। आज नवरात्रि के दूसरे दिन देवी मां के ब्रहमचारणी रूप की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। आइये जानते हैं देवी मां के इस रूप की महिमा और पूजा विधि के बारे में।
Navratri 2nd Day: नवरात्रि की दूसरे दिन इस विधि से करें पूजा, मां ब्रह्मचारिणी दूर करेंगी कष्ट व संकट
Form of Maa Brahmacharini मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
दुर्गा मां के द्वितीय अवतार के रूप में माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। देवी मां के स्वरुप की बात करें तो सफ़ेद रंग की साड़ी पहने माता के एक हाथ में माला और दूसरे में कमंडल है। माता के इस रूप को ब्रह्मा का स्वरुप भी माना जाता है। आज नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जीवन के हर क्षेत्र में तरक्की मिलती है और देवी मां की कृपा सदा बनी रहती है। देवी मां का ये स्वरुप दूसरों को इस बात का संदेश भी देता है की जिस प्रकार से उन्होंने भगवान् शिव को पाने के लिए कठोर तप किया था, उसी प्रकार से आम इंसानों को भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए तब तक प्रयास करना चाहिए जब तक की वो उसे प्राप्त न कर लें।
Importance of worshiping Maa Brahmacharini माता ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
मां दुर्गा के इस रूप की पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन करने से सर्वत्र सिद्धि की प्राप्ति होती है। माता के इस रूप को वैराग, संयम, सदाचार, त्याग और तप का प्रतीक माना जाता है। देवी मां का ये रूप बेहद भव्य और तेजस्वी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के दूसरे दिन यदि देवी मां के इस रूप की पूजा की जाए तो इससे भक्तों को जीवन में आने वाले सभी दुखों से निजात मिलता है। देवी मां के इस रूप की आराधना करने से जीवन में सदाचार की भावना में बढ़ोतरी होती है और जिंदगी को सादगी से जीने की सीख मिलती है।
Maa Brahmacharini's Bhog-Color मां ब्रह्मचारिणी का भोग-रंग
देवी ब्रह्मचारिणी को शक्कर और पंचामृत का भोग अति प्रिय है। देवी को इसका भोग लगाने से दीर्धायु का आशीष मिलता है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी का लाल रंग शुभ माना गया है।
मां ब्रह्मचारिणी मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
मां ब्रह्मचारिणी ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
मां ब्रह्मचारिणी स्त्रोत
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
Method of worship of Maa Brahmacharini माता ब्रह्मचारिणी पूजा विधि
स्नान आदि दैनिक क्रियाओं से निवृत होने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें।
पूजा स्थल की साफ़-सफाई कर एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं, इसके बाद देवी की प्रतिमा स्थापित करें।
अब देवी की प्रतिमा पर शहद, दही, दूध, चीनी और घृत अर्पित करें।
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए लाल रंग के फूल या कमल के फूल का ही इस्तेमाल करें।
इसके बाद विधिपूर्वक धूप, दीप दिखाएं और अक्षत, कुमकुम और चंदन के प्रयोग से माता की पूजा करें।
पूजा के दौरान माता रानी के मंत्र “इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलु देवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मा” का जाप करें।
इसके बाद देवी मां की आरती करें और प्रसाद के रूप में फल एवं मिठाई का भोग लगाएं।
Story of Maa Brahmacharini माता ब्रह्मचारिणी की कथा
मान्यताओं के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की, जिसके बाद उनके माता-पिता उन्हें हतोत्साहित करने की कोशिश करने लगे। हालांकि इन सबके बावजूद देवी ने कामुक गतिविधियों के स्वामी भगवान कामदेव से मदद की गुहार लगाई। ऐसा कहा जाता है कि कामदेव ने शिव पर कामवासना का तीर छोड़ा और उस तीर ने शिव की ध्यानावस्था में खलल उत्पन्न कर दिया, जिससे भगवान आगबबूला हो गए और उन्होंने स्वयं को जला दिया।
कहानी यही खत्म नहीं होती है। उसके बाद पार्वती ने शिव की तरह जीना आरंभ कर दिया। देवी पहाड़ पर गईं और वहां उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या किया जिसके कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी नाम दिया गया। इस कठोर तपस्या से देवी ने भगवान शंकर का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। इसके बाद भगवान शिव अपना रूप बदलकर पार्वती के पास गए और अपनी बुराई की लेकिन देवी ने उनकी एक न सुनी। अंत में शिव जी ने उन्हें अपनाया और विवाह किया।
आचार्य पंडित सुधांशु तिवारी
प्रश्न कुण्डली विशेषज्ञ/ ज्योतिषाचार्य
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