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असम के सबसे लोकप्रिय प्राचीन मंदिरों में से एक है भगवान शिव का यह मंदिर, जानें इसके पीछे का इतिहास

Edited By Sarita Thapa,Updated: 20 Jan, 2025 01:09 PM

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Negheriting Shiva Doul: नेघेरिटिंग शिव दौल भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो असम के गोलाघाट जिले के 37वें राष्ट्रीय राजमार्ग पर डेरगांव की एक पहाड़ी पर स्थित है।

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Negheriting Shiva Doul: नेघेरिटिंग शिव दौल भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है, जो असम के गोलाघाट जिले के 37वें राष्ट्रीय राजमार्ग पर डेरगांव की एक पहाड़ी पर स्थित है। वास्तविक मंदिर 8वीं शताब्दी में कछारियों द्वारा बनाया गया था लेकिन कुछ प्राकृतिक आपदाओं के कारण मंदिर के विध्वंस के बाद इसे 1765 में अहोम स्वर्गदेव राजेश्वर सिंह ने फिर से बनाया था। मंदिर की योजना और डिजाइन प्रसिद्ध वास्तुकार घनश्याम खोनीकर ने तैयार किया था।

PunjabKesari Negheriting Shiva Doul

इतिहास
माना जाता है कि मंदिर के निर्माण में इस्तेमाल किए गए पत्थर दिहिंग नदी के किनारे मौजूद थे। प्राकृतिक आपदाओं के कारण मंदिर नष्ट हो गया और उसके अवशेष गजपनेमारा नामक घने जंगल में पाए गए। हालांकि, जैसे ही दिहिंग नदी ने अपना मार्ग बदला, मंदिर फिर से नष्ट हो गया और नदी के पानी में विलीन हो गया। 

भगवान शिव के एक भक्त को दिहिंग नदी के उथले पानी में खंडहर मंदिर और शिवलिंग मिला, अब इस स्थान को शीतल नेघेरी के नाम से जाना जाता है।अहोम राजा राजेश्वर सिंह (1751-1769) नदी से शिवलिंग लाए और वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण किया तथा इसमें शिवलिंग की स्थापना की।

वास्तुकला
इसे पंचतायन मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि इस स्थान पर भगवान शिव के साथ चार देवी-देवता अर्थात् विष्णु, गणेश, सूर्य और दुर्गा मौजूद हैं। मुख्य मंदिर चार अन्य मंदिरों से घिरा हुआ है, जिनके नाम हैं विष्णु, गणेश, सूर्य और दुर्गा मंदिर।

इसके केंद्र में मुख्य मंदिर है और मुख्य मीनार के चारों कोनों पर उक्त चार सहायक मंदिर हैं। यह पंचायतन पंथ का एक उदाहरण है। मुख्य मंदिर में 3 फुट व्यास का एक बाणङ्क्षलग स्थापित है। किंवदंती के अनुसार उर्बा नामक एक ऋषि इस स्थान पर दूसरी काशी स्थापित करना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने यहां कई शिवङ्क्षलग एकत्र किए थे।

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इस तरह पड़ा नाम
जिस स्थान पर मंदिर स्थित है, वह कभी एक अजीबोगरीब पक्षी का निवास स्थान था, जिसे स्थानीय रूप से नेघेरी के नाम से जाना जाता था। इसी कारण इस स्थान को नेघेरिटिंग के नाम से जाना जाने लगा।

आगमचारजी परिवार करता है रखरखाव
मंदिर के उचित रखरखाव और किए जाने वाले अनुष्ठानों के लिए राजा राजेश्वर सिंह ने भूधर आगमचारजी नामक एक पुजारी को नियुक्त किया था। आगमचारजी परिवार आज भी नियमित रूप से पूजा और अन्य रखरखाव कार्य करता है। मंदिर में देवनती नामक गीत और नृत्य करने की प्रथाएं प्रचलित हैं।

रीसस प्रजाति के बंदरों का आवास
मंदिर के आकर्षणों में बंदर भी शामिल हैं। मंदिर रीसस प्रजाति के बंदरों का आवास है। इस इलाके में इस प्रजाति के बंदरों एक बड़ी आबादी रहती है।

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