Edited By Prachi Sharma,Updated: 02 May, 2024 06:53 AM
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि हिंदू विवाह ‘नाचने-गाने, खाने-पीने’ या वाणिज्यिक लेन-देन का अवसर नहीं है और वैध रस्मों को पूरा किए बिना किसी शादी को
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नई दिल्ली (प.स.): उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि हिंदू विवाह ‘नाचने-गाने, खाने-पीने’ या वाणिज्यिक लेन-देन का अवसर नहीं है और वैध रस्मों को पूरा किए बिना किसी शादी को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत मान्यता नहीं दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार और पवित्र बंधन है जिसे भारतीय समाज में काफी महत्व दिया जाता है। हाल ही में पारित अपने आदेश में पीठ ने युवक-युवतियों से आग्रह किया कि वे “विवाह की संस्था में प्रवेश करने से पहले ही इसके बारे में गहराई से विचार करें क्योंकि भारतीय समाज में विवाह एक पवित्र बंधन है।”
पीठ ने 2 प्रशिक्षित वाणिज्यिक पायलटों के मामले में अपने आदेश में यह टिप्पणी की। दोनों पायलटों ने वैध रस्मों से विवाह किए बिना ही तलाक के लिए मंजूरी मांगी थी। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि जहां हिंदू विवाह सप्तपदी (दूल्हा एवं दुल्हन द्वारा पवित्र अग्नि के समक्ष सात फेरे लेना) जैसे संस्कारों या रस्मों के अनुसार नहीं किया गया हो, उस विवाह को हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा।