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Gangaur: आज यहां दामाद रूप में पूजे जाएंगे भगवान शिव

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Apr, 2024 06:34 AM

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बड़वानी/पश्चिम निमाड़ का सबसे बड़ा महापर्व गणगौर यानि रणुबाई (पार्वती )और धनीयर राजा ( भगवान शिव) के आगमन पर ढोल–ताशो के साथ उन्हें घर लाने का पर्व है। चैत्र सुदी शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन घरों में तैयारीयां की जाती हैं। ए

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Gangaur Puja Vrat 2024- बड़वानी/पश्चिम निमाड़ का सबसे बड़ा महापर्व गणगौर यानि रणुबाई (पार्वती )और धनीयर राजा ( भगवान शिव) के आगमन पर ढोल–ताशो के साथ उन्हें घर लाने का पर्व है। चैत्र सुदी शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन घरों में तैयारीयां की जाती हैं। एक ऐसा लोक पर्व मनाने की जिसमें भगवान शंकर को दामाद एवं माता पार्वती को बेटी के रूप पूजा जाता है। ऐसा सम्भवतः निमाड़ में ही होता है, जहां बेटी के साथ दामाद को भी 9 दिनों तक पूजा जाता है। 

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सुबह से ही माता की बाड़ी में नव विवाहित जोड़ों से लेकर बच्चे, बड़े सब गणगौर माता की पूजा-अर्चना में जुट जाते हैं। माता की बाड़ी में गणगौर माता के प्रतीक के रूप में ज्वारे बो कर गौरी यानि पार्वती का पूजन किया जाता है। गणगौर बेटी के साथ जमाई के पूजे जाने का पर्व है। बेटी एवं दामाद के आगमन का यह पर्व बेटियों के प्रति प्रेम और आस्था जगाता है। साथ ही वर्तमान में बेटियों को जहां गर्भ में मार दिया जाता है, वहीं सैकड़ों सालों से पूरा निमाड़ बेटियों को सम्मान देता आ रहा है।

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सम्पूर्ण निमाड़ आदि शक्ति मां गौरी की आराधना में लग जाता है। चैत्र नवरात्रि में गणगौर लोक पर्व के चलते माता की आगवानी को लेकर लोग 8 दिन पूर्व में ही घरो की साफ-सफाई, घर के सारे कपड़े, बिस्तर धो कर सुखा लेते हैं एवं होलिका दहन के बाद ब्राह्मण, गांव पटेल के घर या मन्दिर में एक निश्चित स्थान होता है। जहां विधि-विधान से बांस की बनी टोकरियों में गेंहू के जवारे बोए जाते हैं। जिसे किवदन्तियों के अनुसार रणुबाई (माता गौरी) का प्रतीक माना जाता है। वही दो दिन पहले लोग विशेष रूप से रथ तैयार करते हैं, जो बांस की चिपलियों से निर्मित होता है।

आज के दिन जवारे रूपी माता के प्रतीक को उस रथ में रख कर साथ में धनियर राजा का रथ बना कर जोड़े से गाजे–बाजे के साथ घर लाया जाता है, इस दौरान रास्ते भर नव विवाहित जोड़े रथ एवं रथ को सर पर रखने वाली महिलाओ के चरण आस्था के साथ धोते हैं और घर पर लाने के बाद जोड़े द्वारा पहले विधि-विधान से रणु बाई को भोग लगाते हैं और साथ में धनियर राजा यानि भगवान शंकर का पूजन करते हैं।

उसके बाद ही घर के सभी लोग पूजा-अर्चना करते हैं। तीन दिनों तक रथ को घर में रखने के बाद जवारे विसर्जन किए जाते हैं। यहां एक निश्चित स्थान पर शहर या गांव के लोग इकठ्ठा होकर जवारे को गले लगा कर विदाई देते हैं। कुछ मन्नत वाले या समाज के लोग रथ बोड़ाते हैं, जिसे रथ रोकना कहते हैं वह अपने घर या मंदिर में रथ को रोक कर प्रसादी का आयोजन करते हैं। अगले दिन फिर विदाई होती है।  

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Gangaur story- निमाड़ में गणगौर पर्व के मनाने को लेकर कई रोचक कथाएं हैं, जिसमें एक यह है की एक किसान की लड़की थी जो विलक्षण प्रतिभा की धनी थी। उसकी शादी जब हुई तो उसके ससुराल में अकाल पड़ गया। लड़की दूर से पानी लाकर बास की टोकरी में गेंहू रख कर जवारे बोती है। इस कार्य में गांव की महिलाएं भी उसका अनुसरण करती हैं जैसे जैसे गेंहू अंकुरित होकर बढ़ते हैं वैसे पानी आता है, जिससे आपदा मिट जाती है। लड़की लकड़ी बाजूट पर जवारे रख उनका विसर्जन करती है, तब से गणगौर का पर्व मनाने की प्रथा का आरंभ हुआ।

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