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जब सूफी संत इब्राहिम ने संभाली बागीचे की जिम्मेदारी

Edited By Lata,Updated: 13 Nov, 2019 09:51 AM

niti shastra

एक बार सूफी संत इब्राहिम घूमते-घूमते किसी धनवान के बागीचे में जा पहुंचे। उनके पहनावे से बागीचे का मालिक

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एक बार सूफी संत इब्राहिम घूमते-घूमते किसी धनवान के बागीचे में जा पहुंचे। उनके पहनावे से बागीचे का मालिक मान बैठा कि यह काम मांगने आया है। उसने संत इब्राहिम से कहा, ''तुम्हें यदि कुछ काम चाहिए तो बागीचे में देखभाल और रखवाली का काम कर सकते हो। इन दिनों मुझे एक ऐसे आदमी की आवश्यकता है जो बागीचे की जिम्मेदारी ईमानदारीपूर्वक संभाल सके।इब्राहिम को एकांत बागीचा अपने लिए बड़ा ही उपयुक्त जान पड़ा। उन्होंने तुरंत उस धनवान व्यक्ति की बात स्वीकार कर ली। उसी समय से वह बागीचे में रखवाली का काम करने लगे।
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बागीचे की देखभाल करते हुए संत इब्राहिम का काफी समय वहां गुजर गया। एक दिन बागीचे का मालिक अपने कुछ मित्रों के साथ घूमता-फिरता अपने बागीचे में आया। उसने इब्राहिम को पास बुलाया और मेहमानों के लिए बागीचे से कुछ आम लाने के लिए कहा। इब्राहिम कुछ पके हुए आम तोड़कर ले आए। उन्होंने जितने आम लाए दुर्भाग्य से वे सारे के सारे एकदम खट्टे निकले। बागीचे के मालिक ने नाराज होकर इब्राहिम से कहा, ''तुम्हें इतने दिन हो गए यहां रहते हुए लेकिन तुम अब तक यह भी नहीं जान पाए कि किस पेड़ के आम खट्टे हैं और किसके मीठे।
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मालिक की बात सुन कर संत इब्राहिम ने जवाब दिया, ''आपने तो मुझे सिर्फ बागीचे की रखवाली करने के लिए नियुक्त किया है। फल खाने का अधिकार तो दिया ही नहीं। आपकी आज्ञा के बिना मैं आपके बागीचे का फल कैसे खा सकता था और बगैर फल खाए यह खट्टा है या मीठा, कैसे पता लगाता। यह जवाब सुन कर बागीचे का मालिक आश्चर्य से इब्राहिम का मुंह देखने लगा। उसने अपने व्यवहार के लिए फौरन उनसे क्षमा मांगी।
 

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